(द्वितीय वलय में २७ अर्घ्य)
(द्वितीय वलय में २७ अर्घ्य) -दोहा- परम शुद्ध परिणाम हित, तुम पद पूजूँ आज। पुष्पांजलि अर्पण करूँ, भरो आश जिनराज।।१।। अथ द्वितीयवलये पुष्पांजलिं क्षिपेत्। -दोहा- लोभ सहित मन से करें, जो संरंभ महान। पाप बंधे इनसे रहित, नमूँ सुपार्श्व भगवान।।२८।। ॐ ह्रीं लोभकृतमन:संरंभमुक्ताय श्रीसुपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। लोभचित्त संरंभ को, जो करवाते जीव। पाप बंधे…