समवसरण वंदना
समवसरण वंदना -गणिनी ज्ञानमती दोहा— चिन्मय चिंतामणि प्रभो, गुण अनंत की खान। समवसरण वैभव सकल, वह लवमात्र समान ।।१।। —शंभुछंद— जय जय तीर्थंकर क्षेमंकर, तुम धर्म चक्र के कर्ता हो। जय जय अनंतदर्शन सुज्ञान, सुखवीर्य चतुष्टय भर्त्ता हो।। जय जय अनंत गुण के धारी, प्रभु तुम उपदेश सभा न्यारी। सुरपति की आज्ञा से धनपति, रचता…