मर्यादा की रक्षा हमारा कर्त्तव्य है
“…मर्यादा की रक्षा हमारा कर्त्तव्य है…” -आचार्यकल्प १०८ श्री श्रुतसागर जी महाराज वर्ण और जातियों की प्राचीनता के संबंध में न जाने क्यों जब-तब शंकाएँ उठायी जाती रही हैं ? बिना सोचे-समझे इस व्यवस्था को कोसा जाता रहा है और आज भी आलोचना की जा रही है, किन्तु यदि पूर्वाग्रह रहित होकर गंभीरतापूर्वक अध्ययन-मनन करें…