सुदर्शनमेरु संबंधि जंबूवृक्ष शाल्मलि वृक्ष जिनालय पूजा
सुदर्शनमेरु संबंधि जंबूवृक्ष शाल्मलि वृक्ष जिनालय पूजा -अथ स्थापना—गीताछन्द- गिरि मेरु के उत्तर दिशी, उत्तरकुरु शोभे अहा। उसमें सुदिक् ईशान के, जंबूतरू राजे महा।। दक्षिण दिशा में देवकुरु, नैऋत्य कोण सुहावनी। तरु शाल्मलि शुभरत्नमय, सुन्दर दिखे शाखाघनी।।१।। —दोहा— दोनों तरु की शाख पर, दो श्री जिनवर गेह। आह्वानन कर मैं जजूूँ, सदा हृदय धर नेह।।२।।…