प्रशस्ति
प्रशस्ति -नरेन्द्र छंद- तीर्थंकर के चरण कमल में, झुक-झुक शीश नमाऊँ। सरस्वती का वंदन करके, त्रिविध साधु गुण गाऊँ।। चौबीसों तीर्थंकर जिनवर, मंगल कर्ता जग में। इनकी भक्ती से विधान यह, रचा सौख्यकर मैंने।।१।। मूलसंघ में कुंदकुंद, आम्नाय प्रसिद्ध हुआ है। गच्छ सरस्वति बलात्कार गण, इसमें मान्य हुआ है।। श्री चारित्रचक्रवर्ती, आचार्य शांतिसागर जी। इनके…