समवसरण गंधकुटी स्तोत्र
समवसरण गंधकुटी स्तोत्र —गीता छंद— तीर्थंकरों की सभाभूमी, धनपती रचना करें। है समवसरण सुनाम उसका, वह अतुलवैभव धरे।। जो घातिया को घातते, वैâवल्यज्ञान विकासते। वे इस सभा के मध्य अधर, सुगंधकुटि पर राजते।।१।। —दोहा— अनंत चतुष्टय के धनी, तीर्थंकर चौबीस। मन-वच-तन त्रयशुद्धि से, नमूँ-नमूँ नत शीश।।२।। —गीता छंद— सब रत्नमय यह पीठ सुंदर, देवनिर्मित तीसरा।…