सुदर्शनमेरु वंदना एवं ध्यानाभ्यास
सुदर्शनमेरु वंदना एवं ध्यानाभ्यास…. मंगलाचरण तीन लोक का ध्यान समवसरण का वर्णन समवसरण में आठ भूमि और तीन कटनी ध्यान भजन
सुदर्शनमेरु वंदना एवं ध्यानाभ्यास…. मंगलाचरण तीन लोक का ध्यान समवसरण का वर्णन समवसरण में आठ भूमि और तीन कटनी ध्यान भजन
ध्यान भजन…. -आर्यिका चंदनामती तर्ज—तन डोले…… ॐकार बोलो, फिर आँखें खोलो, सब कार्य सिद्ध हो जाएँगे, नर जन्म सफल हो जाएगा।। टेक.।। प्रात:काल उषा बेला में बोलो मंगल वाणी। हर घर में खुशियाँ छाएँगी, होगी नई दिवाली।। हे भाई…… प्रभु नाम बोलो, निजधाम खोलो, सब स्वार्थ सिद्ध हो जाएँगे। नर जन्म सफल हो जाएगा।। ॐकार……।।१।।…
समवसरण में आठ भूमि और तीन कटनी… १. पहली ‘‘चैत्यप्रासादभूमि’’ हैं, इसमें एक-एक जिनमंदिर के अंतराल में पांच-पांच प्रासाद हैं। २. दूसरी ‘‘खातिकाभूमि’’ हैं, इसके स्वच्छ जल में हंस आदि कलरव कर रहे हैं और कमल आदि पुष्प खिले हैं। ३. तीसरी ‘‘लताभूमि’’ हैं, इसमें छहों ऋतुओं के पुष्प खिले हुए हैं। ४. चौथी ‘‘उपवनभूमि’’…
“…समवसरण का वर्णन…” ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ तीर्थंकराय नम: भगवान को केवलज्ञान प्रगट होते ही इन्द्र की आज्ञा से कुबेर अर्धनिमिष में समवसरण की रचना कर देता है। उस समय भगवान तीनों लोकों को और उनकी भूत, भावी, वर्तमान समस्त पर्यायों को युगपत् एक समय में जान लेते हैं।भगवान शांतिनाथ का समवसरण पृथ्वी से ५०००…
तीन लोक का ध्यान १. तीन लोक रचना बनाकर अर्थात् दोनों पैरों को पैâलाकर दोनों हाथों को कमर पर रखकर खड़े होने से तीन लोक का आकार बन जाता है। ऐसा आकार बनाकर खड़े होकर कम से कम पाँच मिनट तक तीन लोक के जिनमंदिरों की वंदना करना चाहिए। २. इसमें नाभि के नीचे अधोलोक…
“…सज्जाति परमस्थान…” 1. मर्यादा की रक्षा हमारा कर्तव्य है -आचार्यकल्प १०५ श्री श्रुतसागर जी महाराज) 2. वर्ण व्यवस्था -आचार्यकल्प १०५ श्री श्रुतसागर जी महाराज 3. आगम के आलोक में वर्ण-गोत्र आदि की स्थिति -आचार्यकल्प १०८ श्री श्रुतसागर जी महाराज 4. सज्जाति -गणिनी आर्यिका ज्ञानमती 5. वर्ण एवं जाति-व्यवस्था के संबंध में आगमिक व्यवस्था और आधुनिक…
“…खानदान और खानपान शुद्धि का महत्त्व…” -पं. शिवचरनलाल जैन, मैनपुरी (उ.प्र.) वन्दे धर्मतीर्थेशं, श्रीपुरुदेवपरम् जिनम्। दानतीर्थेशश्रेयासं चापि शुद्धिप्रदायकम्।। जातिकुलशुद्धिमादाय, अशनपानपवित्रताम्। परमस्थानसंप्राप्ता: विजयन्तु परमेष्ठिन:।।स्वोपक्ष।। मैं धर्मतीर्थ, व्रत तीर्थकर्ता उत्कृष्ट प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान और शुद्धि प्रदायक दानतीर्थेश श्रेयांस को प्रणाम करता हूँ। जिन्होंने जाति, कुल शुद्धि और भोजनपान की शुद्धि प्राप्त कर सप्त परमस्थानों सहित…
‘खानदान-शुद्धि’ शब्द नहीं, सिद्धान्त है… -प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन, फिरोजाबाद (उ.प्र.) कालचक्र सदैव गतिशील रहता है। जैनागम के अनुसार काल के दो विभाग हैं-अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी। प्रत्येक विभाग के छह-छह भेद हैं। अवसर्पिणी काल का पहिया सुख से दु:ख की ओर तथा उत्सर्पिणी का दु:ख से सुख की ओर घूमता है। वर्तमान में अवसर्पिणी काल…
जैनधर्म और वर्ण व्यवस्था…… -आर्यिका श्री विजयमती माताजी स्याद्वादो वर्तते यस्मिन्, पक्षपातो न विद्यते। नास्ति परिपीडनं यस्मिन्, जैनधर्मो स उच्यते।। ‘जिसमें वस्तुतत्व-प्रतिपादन का माध्यम स्याद्वाद हो, प्रत्येक वस्तु में रहने वाले अनन्त धर्मों का निरूपण निष्पक्ष रूप से किया गया हो, परपीड़ा का जिसमें लवलेश भी नहीं रहे, वही जैनधर्म है।’ इस कथन से स्पष्ट…
जाति और वर्ण……. -आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी शास्त्रकारों ने ‘जाति’ शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में किया है। एक अर्थ है-नाम कर्म के उदय से होने वाली जाति, जैसे-गतिजातिशरीरांगोपांग…….इत्यादि। इसके पाँच भेद हैं-१. एकेन्द्रिय जाति, २. द्वीन्द्रिय जाति, ३. त्रीन्द्रिय जाति, ४. चतुरिन्द्रिय जाति, ५. पंचेन्द्रिय जाति। इसमें पंचेन्द्रिय जाति की अपेक्षा मानव, देव, नारकों…