श्री वङ्काधर तीर्थंकर पंचकल्याणक स्तुति
श्री वङ्काधर तीर्थंकर पंचकल्याणक स्तुति —गीता छंद— पश्चिम विदेहे अचल मेरू, नदी सीतोदा तटे। नगरी सुसीमा पद्मरथ, रानी सरस्वति मातु के।। जब गर्भ तिष्ठे इंद्रगण, सुरवृंद माँ पितु को जजें। हम गर्भकल्याणक नमत, संपूर्ण दु:खों से बचें।।१।। नव मास नंतर अवतरें, सुरगृह स्वयं बाजे बजें। जन्में जिनेश्वर उसी क्षण, सुरपति मुकुट भी थे झुके।। माँ…