आस्रव त्रिभंगी
“…आस्रव त्रिभंगी…” 1. मंगलाचरण 2. आस्रव के भेद 3. गुणस्थानों में व्युच्छिन्न होने वाले आस्रवों की संख्या 4. मार्गणा में आस्रव का प्रकरण 5. प्रशस्ति 6. बंध प्रत्यय 7. जैन आगम में द्वादश तप (इनके क्रम में अन्तर)
“…आस्रव त्रिभंगी…” 1. मंगलाचरण 2. आस्रव के भेद 3. गुणस्थानों में व्युच्छिन्न होने वाले आस्रवों की संख्या 4. मार्गणा में आस्रव का प्रकरण 5. प्रशस्ति 6. बंध प्रत्यय 7. जैन आगम में द्वादश तप (इनके क्रम में अन्तर)
जैन आगम में द्वादशतप (इनके क्रम में अन्तर) तवायारो वारसविहो, अब्भंतरो छव्विहो बाहिरो छव्विहो चेदि तत्थ बाहिरो अणसणं आमोदरियं१ वित्तिपरिसंखा रसपरिच्चाओ सरीर-परिच्चाओ विवित्तसयणासणं चेदि। तत्थ अब्भंतरो पायच्छित्तं विणओ वेज्जावच्चं सज्झाओ झाणं विउस्सग्गो चेदि। अब्भंतरं बाहिरं बारसविहं तवोकम्मं ण कदं णिसण्णेण, पडिक्कंतं, तस्स मिच्छा मे दुक्कडंं।।३।। छह अभ्यंतर छह बाहिर से बारहविध तप आचार कहा। उनमें…
बंधप्रत्यय बंध प्रत्यय अर्थात् बंध के कारण चार माने हैं। श्री गौतमस्वामी ने प्रतिक्रमण पाठ में अनेक बार— चउण्णं पच्चयाणं१।’’ चउसु पच्चएसु।।’’ टीकाकारों ने मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग ऐसे नाम दिये हैं। षट्खण्डागम में तो अनेक स्थलों पर ये प्रत्यय चार ही माने हैं। षट्खण्डागम में तृतीय खण्ड का नाम ही ‘‘बंध स्वामित्व-विचय’’ है।…
प्रशस्ति…. श्री शांतिनाथ श्री कुंथुनाथ श्री अर जिनवर को नित्य नमूँ। श्री ऋषभदेव से महावीर तक, चौबिस जिनवर को प्रणमूँ।। श्री सरस्वती माँ को वंदूं, श्री गौतमगणधर को प्रणमूँ। आचार्य उपाध्याय साधु परम-गुरुओं को पुन: पुन: प्रणमूँ।।१।। श्री मूलसंघ में कुंदकुंद आम्नाय, सरस्वति गच्छ कहा। विख्यात बलात्कारगण से, गुरु परम्परा से मान्य रहा।। इसमें अगणित…
मार्गणा में आस्रव का प्रकरण विजिदचउघाइकम्मे केवलणाणेण णादसयलत्थे। वीरजिणे वंदित्ता जहाकमं मग्गणासवं वोच्छे।।२४।। विजितचतुर्घातिकर्माणं केवलज्ञानेन ज्ञातसकलार्थं। वीरजिनं वन्दित्वा यथाक्रमं मार्गणायामास्रवान् वक्ष्ये।। जिन्होंने चार घातिया कर्मों को जीत लिया है एवं केवलज्ञान के द्वारा संपूर्ण पदार्थों को जान लिया है ऐसे श्री वीर जिनेन्द्र को नमस्कार करके मैं क्रम से मार्गणाओं में आस्रवों को कहूूँगा।।२४।। पर्याप्त-अपर्याप्त…
गुणस्थान रचना (१)….. कोष्ठक नं. १ चार्ट का स्पष्टीकरण अब गुणस्थानों में योग को घटित करते हैं तिसु तेरं दस मिस्से सत्तसु णव छट्ठयम्मि एक्कारा। जोगिम्हि सत्तजोगा अजोगिठाणं हवे सुण्णं।।२२।। त्रिषु त्रयोदश दश मिश्रे सप्तसु नव षष्ठे एकादश। योगिनि सप्तयोगा अयोगिस्थानं भवेच्छून्यं।। तीन गुणस्थानों में १३-१३, मिश्र में १०, सात गुणस्थानों में ९-९ एवं छठे…
आस्रव के भेद…. मिच्छत्तं अविरमणं कसाय जोगा य आसवा होंति। पण बारस पणवीसा पण्णरसा होंति तब्भेया।।२।। मिथ्यात्वमविरमणं कषाया योगाश्च आस्रवा भवन्ति। पंच द्वादश पंशविंशति: पंचदश भवन्ति तद्भेदा:।। मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग ये आस्रव कहलाते हैं। ये आस्रव के लिए कारणभूत हैं अत: इन्हें आस्रव कह देते हैं। इनके उत्तर भेद क्रम से मिथ्यात्व के…
-मंगलाचरण- पणमिय सुरेंदपूजियपयकमलं वड्ढमाणममलगुणं। पच्चयसत्तावण्णं वोच्छे हं सुणह भवियजणा।।१।। प्रणम्य सुरेन्द्रपूजितपदकमलं वर्धमानं अमलगुणं। प्रत्ययसप्तपंचाशत् वक्ष्येऽहं शृणुत भव्यजना:।। सुरेन्द्र से पूजित हैं चरण कमल जिनके, ऐसे अमल गुणों से सहित श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र को नमस्कार करके आस्रव के कारणभूत सत्तावन भेदों को मैं कहूँगा। हे भव्यजीवों! तुम उन्हें सावधानचित्त होकर सुनो!।।१।।
सरस्वती स्तोत्र…. (प्रतिष्ठातिलक ग्रंथ से) बारह अंगंगिज्जा, दंसणतिलया चरित्तवत्थहरा। चोद्दसपुव्वाहरणा, ठावे दव्वाय सुयदेवी।।१।। आचारशिरसं सूत्र-कृतवक्त्रां सुकंठिकाम्। स्थानेन समवायांग-व्याख्याप्रज्ञप्तिदोर्लताम् ।।२।। वाग्देवतां ज्ञातृकथो-पासकाध्ययनस्तनीम्। अंतकृद्दशसन्नाभि-मनुत्तरदशांगत: ।।३।। सुनितंबां सुजघनां, प्रश्नव्याकरणश्रुतात्। विपाकसूत्रदृग्वाद-चरणां चरणांबराम् ।।४।। सम्यक्त्वतिलकां पूर्व-चतुर्दशविभूषणाम्। तावत्प्रकीर्णकोदीर्ण-चारुपत्रांकुरश्रियम्।।५।। आप्तदृष्टप्रवाहौघ-द्रव्यभावाधिदेवताम् । परब्रह्मपथादृप्तां, स्यादुक्तिं भुक्तिमुक्तिदाम् ।।६।। निर्मूलमोहतिमिरक्षपणैकदक्षं, न्यक्षेण सर्वजगदुज्ज्वलनैकतानम् । सोषेस्व चिन्मयमहो जिनवाणि ! नूनं, प्राचीमतो जयसि देवि ! तदल्पसूतिम् ।।७।। आभवादपि दुरासदमेव,…