पाँचवीं ढाल
“…पाँचवीं ढाल…” (चाल छंद) भावनाओं के चिन्तवन का कारण, अधिकारी और लाभ मुनि सकलव्रती बड़भागी, भव-भोगनतैं वैरागी। वैराग्य उपावन माई, चिंतैं अनुप्रेक्षा भाई।।१।। अर्थ-संसार, शरीर एवं भोगों से विरक्त होकर जिन्होंने सकलव्रतों को धारण किया है, वे दिगम्बर (निर्गं्रथ) मुनिराज बड़े भाग्यवान हैं। संसार, शरीर और भोगों की असारता तथा अनित्य आदि बारह भावनाओं के…