अथ सप्तम: परिच्छेद:
अथ सप्तम: परिच्छेद: सर्वथा अंतरंग अर्थ मानना सदोष है अन्तरङ्गार्थतैकान्ते बुद्धिवाक्यं मृषाऽखिलम्। प्रमाणाभासमेवातस्तत् प्रमाणादृते कथम्।।७९।। स्वसंविदित जो ज्ञान तत्व है, अन्तरंग यदि अर्थ वही। तब बुद्धि-अनुमान-शास्त्र सब, बाह्य वस्तु हैं मृषा सही।। अत: प्रमाणाभास हुये ये, अनुमान आगम चूंकि मृषा। बिन प्रमाण के कहाँ प्रमाणाभास बनेगा सभी सफा।।७९।। अन्वयार्थ-(अंतरङ्गार्थतैकांते अखिलं बुद्धिवाक्यं मृषा) यदि एकांत से…