सुप्रभाताष्टक-स्तोत्रं
“…सुप्रभाताष्टक-स्तोत्रं…” देवेन्द्रवंद्यचरणांबुरुहं जिनेन्द्रं। उत्तिष्ठ भव्य! भज तं सहसा प्रभाते।। भंक्त्वा प्रमादमचिरं त्यज मोहनिद्रां। उत्तिष्ठ भव्य! भुवि विस्फुरितं प्रभातम्।।१।। सुरपति वंदित चरणसरोरुह कर्म शत्रुजित् जिनवर को। उठो भव्य! प्रात: मंगलमय बेला में तुम उन्हें भजो।। मोहनींद को दूर भगावो उठो! उठो! झट तजो प्रमाद। उठो भव्य! अब प्रकाश पैâला मंगलमय हो सदा प्रभात।। आगत्य चैत्यसदने जिनवक्त्रपद्मं।…