अथ द्वितीय: परिच्छेद:
“अथ द्वितीय: परिच्छेद:” अद्वैत एकांत में दोष अद्वैतैकान्तपक्षेऽपि, दृष्टो भेदो विरुध्यते। कारकाणां क्रियायाश्च, नैकं स्वस्मात्प्रजायते।।२४।। यदि अद्वैतरूप है सब जग, यह एकांत लिया जावे। तब तो कारक और क्रिया का, भेद दिखे वह नहिं पावे।। दिखता है साक्षात् भेद जो, वह भी है विरुद्ध होगा। क्योंकि एक ही ब्रह्मा ही, निज से उत्पन्न नहीं होता।।२४।।…