अहिंसा की पूजा
अहिंसा की पूजा…. पात्रानुक्रमणिका पाकशासन काशीनरेश धर्मदत्त सेठ का पुत्र यमपाल चांडाल मंगी चांडाल की भार्या कोतवाल …
अहिंसा की पूजा…. पात्रानुक्रमणिका पाकशासन काशीनरेश धर्मदत्त सेठ का पुत्र यमपाल चांडाल मंगी चांडाल की भार्या कोतवाल …
महामंत्र का प्रभाव…. पात्रानुक्रमणिका धनपाल उज्जयिनी का राजा धनदत्त उज्जयिनी का सेठ दृढ़सूर्य चोर बसंतसेना …
आटे का मुर्गा…. (१) उज्जयिनी नगरी में चारों तरफ हर्ष और विषाद का वातावरण एक साथ दिख रहा है। महाराजा यशोध अपने पुत्र यशोधर का राज्याभिषेक महोत्सव सम्पन्न कर चुके हैं। उसके मस्तक पर अपना पट्टबंध रखकर स्नेह से भरे शब्दों में कह रहे हैं- ‘‘बेटा यशोधर! जैसे मैंने अपने पिता यशबंधुर के दिए हुए…
पतिव्रता (१) राजा पुहुपाल अपने राजसिंहासन पर आरूढ़ थे। मंत्रीगण नगरी की शोभा का बखान कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने कहा— ‘राजन्! इस उज्जयिनी नगरी में राजपथ के दोनों ओर गगनचुम्बी राजप्रासादों की कतार बनी हुई है। उनके ऊपरी भाग में कंगूरे के ऊपर कलश और ध्वजा की अपूर्व शोभा दिखाई दे रही है। आपके…
धरती के देवता….. सिद्ध पद के इच्छुक जो महापुरुष पंचेन्द्रिय के विषयों की इच्छा समाप्त करके सम्पूर्ण आरम्भ और परिग्रह का त्याग कर देते हैं तथा ज्ञान ध्यान और तप में सदैव तत्पर रहते हैं, वे ही मुक्तिपथ के साधक होने से सच्चे साधु कहलाते हैं। वे महामना दिगम्बर अवस्था को धारण कर लेते हैं।…
आदिब्रह्मा (१) महाराजा नाभिराय और मरुदेवी से अलंकृत पवित्र स्थान में कल्पवृक्षों का अभाव देखकर और ‘‘इन दोनों के स्वयंभू ऋषभदेव पुत्र जन्म लेंगे।’’ ऐसा अवधिज्ञान से जानकर स्वयं इंद्र अनेक उत्साही देवों के साथ वहाँ आते हैं और उसी स्थल को मध्य में करके एक सुन्दर नगरी की रचना कर देते हैं। चार गोपुर…
१. जिनमाता की महिमा २. कन्यारत्न ही सर्वोत्कृष्ट रत्न है ३. जटायु पक्षी ४. भाग्य का चमत्कार ५. उपवास के गुण ६. अनेकांत ७. तीर्थंकरों के पूर्व भव के गुरु ८. अभक्ष्य किसे कहते हैं? ९. तप का प्रभाव १०. आई हुई निधि चली गई ११. जिनधर्म की देशना का पात्र कौन? १२. प्रत्युपकार १३….
चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली….
महिलाओं के कर्तव्य……. संसार की दृष्टि में स्त्री और पुरुष दो अंग हैं। जैसे कुंभकार के बिना चाक से बर्तन नहीं बन सकते हैं अथवा कृषक के बिना पृथ्वी से धान्य की फसल नहीं हो सकती है उसी प्रकार स्त्री-पुरुष दोनों के संयोग के बिना सृष्टि की परम्परा नहीं चल सकती है। इतना सब कुछ…
ध्यान……. माधुरी-माताजी! आज ध्यान की चर्चा जहाँ-तहाँ चलती रहती है, वह ध्यान क्या है? और उसके कौन-कौन से भेद हैं? माताजी-एकाग्रचिन्तानिरोध होना अर्थात् किसी एक विषय पर मन का स्थिर हो जाना ध्यान है। यह ध्यान उत्तम संहनन वाले मनुष्य के अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त तक ही हो सकता है। इस ध्यान के आर्त, रौद्र,…