(प्रमाण का लक्षण)
(प्रमाण का लक्षण) ‘प्रकर्षेण’-प्रकृष्ट रूप से-संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय का व्यवच्छेद-निराकरण करके स्व और पर स्वरूप को जो ‘मिमीते जानाति’ जानता है, या ‘मीयतेऽनेन’ जिसके द्वारा जाना जाता है अथवा ‘मितिमात्रं’ जानना मात्र प्रमाण है। प्रमाण शब्द की ऐसी व्युत्पत्ति होती है। निश्चय और व्यवहारनय के द्वारा द्रव्य और पर्याय में अभेद और भेद की…