व्रत -विधि
व्रत -विधि यहाँ पर पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा बतलाये गये कुछ व्रत प्रस्तुत किए जा रहे हैं, व्रत करने के इच्छुक भक्तगण इन व्रतों को करके अपने जीवन को संयमी बनाएँ, यही मंगलभावना है।
व्रत -विधि यहाँ पर पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा बतलाये गये कुछ व्रत प्रस्तुत किए जा रहे हैं, व्रत करने के इच्छुक भक्तगण इन व्रतों को करके अपने जीवन को संयमी बनाएँ, यही मंगलभावना है।
ध्यानसूत्र (श्री माघनंदिआचार्यविरचित) (सामायिक में ध्यान के पूर्व इन सूत्रों का भी चिंतवन कीजिए। ये सूत्रमंत्र निश्चयनय की अपेक्षा से शुद्धात्मा की भावनास्वरूप हैं।) १. रागद्वेष-मोह रहितोऽहं २. क्रोध-मान-माया-लोभ रहितोहं ३. पंचेन्द्रियविषयव्यापार-शून्योहं ४. मनोवचनकायक्रियारहितोहं ५. द्रव्यकर्मभावकर्मनोकर्मरहितोहं ६. ख्यातिपूजालाभादि-विभावभावरहितोहं ७. दृष्टश्रुतानुभूतभोगाकांक्षा रहितोहं ८. शल्यत्रयरहितोहं ९. गारवत्रय-रहितोहं १०. दंडत्रयरहितोहं ११. विभावपरिणामशून्योहं १२. निजनिरंजनस्वरूपोहं १३. स्वशुद्धात्म-सम्यक्श्रद्धानपरिणतोहं १४. भेदज्ञानानुष्ठानपरिणतोहं…
पिण्डस्थ ध्यान की पाँच धारणाएँ १. श्री सुखसम्पन्नोऽहं २. ह्री गुणसम्पन्नोऽहं ३. धृतिगुणसम्पन्नोऽहं ४. श्रीगुणसम्पन्नोऽहं ५. कीर्तिसम्पन्नोऽहं। पुन: अपनी अन्तर्यात्रा प्रारंभ कर दें, इस यात्रा का लक्ष्य बिन्दु है-ह्रीं बीजाक्षर। चौबीस तीर्थंकरों को नमन करते हुए ध्यान का प्रथम चरण प्रारंभ करें- १. ध्यान का प्रथम चरण-सबसे पहले चित्त के द्वारा ‘ह्रीं’ पद लिखें। ह्र,…
ह्रीं का ध्यान ध्यान की उपयोगिता-स्वास्थ्य का पहला लक्षण मेरुदण्ड लचीला और स्वस्थ रहे। मेरुदण्ड को लचीला रखने के लिए मेरुदण्ड की क्रियाएँ और सीधा बैठना आवश्यक है। मेरुदण्ड के मात्र सीधा रहने से प्राण-धारा का सन्तुलन होने लगता है, जिससे व्यक्ति शक्तिशाली और प्राणवान बनता है। दीर्घश्वास से एकाग्रता आती है और गुस्सा शांत…
ॐ का ध्यान पदस्थ ध्यान कैसे प्रारंभ करें?-सर्वप्रथम आप शुद्धमन से शुद्धवस्त्र धारण कर किसी एकांत स्थान अथवा पार्क जैसे खुले स्थान पर पद्मासन, अर्धपद्मासन अथवा सुखासन से बैठ जाएँ। शरीर पर पहने हुए वस्त्रों के अतिरिक्त समस्त परिग्रह को त्यागकर स्वाधीनता का अनुभव करते हुए तन-मन में शिथिलता का सुझाव दें और हाथ जोड़कर…
ध्यान कैसे करें? ध्यान का लक्षण-एकाग्रचिन्तानिरोध होना अर्थात् किसी एक विषय पर मन का स्थिर हो जाना ध्यान कहलाता है। यह ध्यान उत्तम संहनन वाले मनुष्य के अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त (४८ मिनट) तक ही हो सकता है। ध्यान के चार भेद माने हैं। जिनके लिए कहा भी है- आर्तं रौद्रं च दुधर््यानं, निर्मूल्य त्वत्प्रसादत:।…
(७) परस्त्री सेवन से हानि कामबाण से पीड़ित होकर विवाहिता स्त्री को छोड़कर अन्य स्त्रियों के पास जाना आना, उनके साथ रमण करना परस्त्री सेवन व्यसन है। इस परस्त्री सेवन में लंकाधिपति रावण प्रसिद्ध है। माता-पिता की आज्ञा से पालने वाले महापुरुष रामचन्द्र जी १४ वर्ष वनवास के लिए निकले। साथ में पत्नी सीता, भाई…
(६) चोरी करने से हानि किसी की गिरी पड़ी भूली हुई वस्तु को उठा लेना चोरी है। चोरी करने से दोनों लोकों में अपयश एवं महान दु:ख उठाना पड़ता है। किसी के यहाँ डाका डाल कर धोखा देकर उनकी वस्तुओं को हड़पना चोरी है। चोरी से अनेकों हानियाँ होती हैं। एक बहुचर्चित कथा इस प्रकार…
(५) वेश्या गमन से हानि काम वेदना से पीड़ित होकर सार्वजनिक व्यभिचारिणी स्त्रियों के पास जाना वेश्या सेवन है। वेश्यागामी लोग व्यभिचारी, लुच्चे, नीच, चाण्डालादि कहलाते हैं क्योंकि वेश्या सभी नीच लोगों के साथ समागम करती हैं। वे इस भव में कीर्ति-यश-धन का नाश करके दुर्गति में जाते हैं।उदाहरण-चम्पापुर के सेठ भानुदत्त एवं स्त्री देवीला…
(४) शिकार खेलने से हानि रसना इन्द्रिय की लोलुपता से या अपने मनोरंजन के लिए बाण, गोली आदि से बेचारे निरपराधी भयभीत ऐसे जंगली पशु-पक्षी एवं अन्य जीवों को मारना शिकार है, इसका अनंतकाल तक दु:ख है। इससे यह जीव प्रथम तो अपनी आत्मा का ही घात कर लेता है। दूसरे का घात हो चाहे…