३. प्रवचन
३. प्रवचन रत्नत्रय का उपदेश देना या उनसे संबंधित महापुरुषों का इतिहास सुनाना, जीवादि सात तत्त्वों का विवेचन करना, आत्मा के-बहिरात्मा, अंतरात्मा, परमात्मा आदि भेदों को कहना, इसका नाम प्रवचन है।
३. प्रवचन रत्नत्रय का उपदेश देना या उनसे संबंधित महापुरुषों का इतिहास सुनाना, जीवादि सात तत्त्वों का विवेचन करना, आत्मा के-बहिरात्मा, अंतरात्मा, परमात्मा आदि भेदों को कहना, इसका नाम प्रवचन है।
२. प्रवचन का विषय जिनेन्द्रदेव की वाणी ही प्रवचन का विषय है अत: कम से कम निम्नलिखित ग्रंथों का स्वाध्याय प्रवचनकर्त्ता को अवश्य ही होना चाहिए। १. प्रथमानुयोग में-महापुराण, उत्तरपुराण, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, पांडवपुराण, आराधनाकथाकोश, पुण्यास्रव-कथाकोश, बृहत्कथाकोश, जम्बूस्वामी चरित, धन्यकुमार चरित, महावीर चरित, श्रेणिक चरित आदि। २. करणानुयोग में-जैन ज्योतिर्लोक, त्रिलोकभास्कर, जम्बूद्वीप, गोम्मटसार जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड, पंचसंग्रह…
१. प्रवचनकर्त्ता रत्नत्रय से विभूषित आचार्य, उपाध्याय और साधु ये तीन प्रकार के दिगम्बर मुनि ही मुख्यरूप से प्रवचनकर्त्ता होते हैं, किन्तु गौणरूप से विद्वान् श्रावक भी हो सकते हैं। श्री गुणभद्रसूरि ने प्रवक्ता आचार्य के गुणों का वर्णन बहुत ही सुंदर किया है- प्राज्ञ: प्राप्तसमस्तशास्त्रहृदय: प्रव्यक्तलोकस्थिति:, प्रास्ताश: प्रतिभापर: प्रशमवान् प्रागेव दृष्टोत्तर:। प्राय: प्रश्नसह: प्रभु:…
“…प्रवचनकार के लिए आवश्यक निर्देश…” प्रवचनकर्त्ता विद्वान् को पहले निम्नलिखित चार बातों को समझ लेना अति आवश्यक है-प्रवचनकर्त्ता, प्रवचन का विषय, प्रवचन और प्रवचन का फल। अर्थात् प्रवचनकर्त्ता वैâसा होना चाहिए ? उसमें क्या-क्या गुण आवश्यक हैं ? प्रवचन का विषय क्या है ? प्रवचन किसे कहते हैं ? और प्रवचन का फल क्या है…
देवगति से आने-जाने के द्वार देवों के तेरह दंडक माने हैं-भवनवासी देवों के १०, व्यंतरवासी देवों का १, ज्योतिषी देवों का १ और वैमानिक देवों का १, ऐसे १० ± १ ± १ ± १ · १३ दंडक देवसंबंधी हैं। मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच इनके बिना कोई भी देवपद को प्राप्त नहीं कर सकते हैं…
मनुष्यगति से आने-जाने के द्वार मनुष्यगति में प्राप्त करने योग्य सबसे श्रेष्ठ जो स्थान ‘मुक्तिधाम’ है यदि आप इस मनुष्य पर्याय से उस मोक्ष पुरुषार्थ को प्राप्त करने के लिए धर्म पुरुषार्थ का अवलंबन कर लेते हैं तो ठीक है अन्यथा इस चिंतामणि सदृश मनुष्य गति से आप निगोद में भी जा सकते हैं-जहाँ से…
तिर्यंचों की आयु शुद्ध पृथ्वीकायिक जीव की उत्कृष्ट आयु १२ हजार वर्ष, खर पृथ्वीकायिक जीव की २२ हजार वर्ष, जलकायिक जीव की ७ हजार वर्ष, अग्निकायिक जीव की ३ दिन, वायुकायिक जीव की ३ हजार वर्ष और वनस्पतिकायिक जीव की १० हजार वर्ष प्रमाण है।विकलेन्द्रियों में दो इन्द्रिय की १२ वर्ष, तीन इन्द्रियों की ४९…
“…तिर्यग्गति से आने-जाने के द्वार..” पंचेन्द्रिय पशु यदि मरण करते हैं तो वे चौबीसों दण्डक में (चारों गतियों में) जा सकते हैं। तो पहले आप चौबीस दण्डक को समझ लीजिए- नरक गति का दण्डक-१, भवनवासी के दण्डक-१०, ज्योतिषी देव का-१, व्यंतरों का-१, वैमानिक देवों का-१, स्थावर के-५, विकलत्रय के-३, पंचेन्द्रिय तिर्यंच का-१ और मनुष्य का-१,…
नरकगति से आने-जाने के द्वार (१) नरकगति से आने के दो द्वार हैं और नरकगति में जाने के भी दो ही द्वार हैं-एक मनुष्य और द्वितीय तिर्यंच। अर्थात् मनुष्य या पंचेन्द्रिय तिर्यंच ही मरकर नरकगति में जा सकते हैं तथा नरकगति से निकलकर जीव मनुष्य या पंचेन्द्रिय तिर्यंच ही हो सकते हैं, अन्य गति में…
गतियों से आने-जाने के द्वार ‘भवांतरावाप्ति: गति:’ एक भव को छोड़कर दूसरे भव के ग्रहण करने का नाम गति है। गति के चार भेद हैं-नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति। एक-एक गति से आने के और उसमें जाने के कितने द्वार हैं सो ही देखिए-