कल्पद्रुम विधान की आरती
कल्पद्रुम विधान की आरती तर्ज—तन डोले…………. जय जय प्रभुवर, चौबिस जिनवर की, मंगल दीप प्रजाल के मैं आज उतारूं आरतिया ।टेक.।। समवसरण के बीच प्रभूजी, नासादृष्टि विराजें। गणधर मुनि नरपति से शोभित, बारह सभा सुराजें।।प्रभू जी.।। ओंकार धुनी, सुन करके मुनि, रत रहें स्वपर कल्याण में मैं आज उतारूं आरतिया।।१।। चार दिशा के मानस्तंभों, में…