(१०१) नवलब्धि व्रत (नवकेवललब्धि व्रत)
(१०१) नवलब्धि व्रत (नवकेवललब्धि व्रत) तीर्थंकर भगवन्तों को जब केवलज्ञान प्रगट हो जाता है तब अर्हंत अवस्था में उन्हें नव केवललब्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। दर्शनमोहनीय के अभाव से क्षायिकसम्यक्त्वलब्धि, चारित्रमोहनीय के अभाव से क्षायिकचारित्रलब्धि, ज्ञानावरणकर्म के नाश से केवलज्ञानलब्धि, दर्शनावरण के क्षय से केवलदर्शनलब्धि, अंतरायकर्म के पाँच भेदों में से क्रमश: दानान्तराय के विनाश…