दक्षिणेन्द्र और उत्तरेन्द्र
दक्षिणेन्द्र और उत्तरेन्द्र इन इंद्रों में जिनका नाम पहले उच्चारण किया गया है वे ८ दक्षिणेन्द्र हैं एवं जिनका नाम बाद में है वे ८ उत्तरेन्द्र कहलाते हैं।
दक्षिणेन्द्र और उत्तरेन्द्र इन इंद्रों में जिनका नाम पहले उच्चारण किया गया है वे ८ दक्षिणेन्द्र हैं एवं जिनका नाम बाद में है वे ८ उत्तरेन्द्र कहलाते हैं।
व्यंतर देवों के शरीर के वर्ण व्यंतर देव देह का वर्ण किन्नर – प्रियंगु िंकपुरुष – सुवर्ण सदृश महोरग – कालश्यामल गंधर्व – शुद्धसुवर्ण यक्ष – कालश्यामल राक्षस – शुद्धश्याम भूत – कालश्यामल पिशाच – कज्जल के सदृश ये सभी किन्नर आदि देव कृष्ण आदि वर्ण के होते हुए भी सुंदर, देखने में सौम्य, सुभग,…
पिशाचों के १४ भेद कूष्मांड, यक्ष, राक्षस, संमोह, तारक, अशुचि, काल, महाकाल, शुचि, सतालक, देह, महादेह, तूष्णीक और प्रवचन। इनमें २ इंद्र – काल, महाकाल। काल की २ अग्रदेवियाँ – कमला, कमलप्रभा। महाकाल की २ अग्रदेवियाँ – उत्पला, सुदर्शना। इन इंद्रों की आयु १ पल्य एवं इनकी अग्रदेवियों की आयु अर्धपल्य है। इन अग्रदेवियों में…
भूतों के ७ भेद सुरूप, प्रतिरूप, भूतोत्तम, प्रतिभूत, महाभूत, प्रतिच्छन्न और आकाशभूत। इनके इंद्र – सुरूप, प्रतिरूप। सुरूप की २ देवियाँ – रूपवती, बहुरूपा। प्रतिरूप की २ देवियाँ – सुमुखी, सुसीमा।
राक्षसों के ७ भेद भीम, महाभीम, विनायक, उदक, राक्षस, राक्षस-राक्षस और ब्रह्मराक्षस। इनके २ इंद्र – भीम, महाभीम। भीम की देवियाँ – पद्मा, वसुमित्रा। महाभीम की देवियाँ – रत्नाढ्या, कंचनप्रभा।
यक्षों के १२ भेद मणिभद्र, पूर्णभद्र, शैलभद्र, मनोभद्र, भद्रक, सुभद्र, सर्वभद्र, मानुष, धनपाल, स्वरूपयक्ष, यक्षोत्तम और मनोहरण ये १२ भेद यक्षों के हैं। इनमें इंद्र – मणिभद्र, पूर्णभद्र। मणिभद्र की २ देवियाँ – कुंदा, बहुपुत्रा। पूर्णभद्र की २ देवियाँ – तारा, उत्तमा।
गंधर्वजाति के देवों के १० भेद हाहा, हूहू, नारद, तुंबरू, वासव, कदम्ब, महास्वर, गीतरति, गीतरस और वङ्कामान्। इनमें इंद्र – गीतरति और गीतरस। गीतरति की दो अग्रदेवियाँ – सरस्वती, स्वरसेना। गीतरस की दो अग्रदेवियाँ – नंदिनी,प्रियदर्शना।
किन्नर के १० भेद किंपुरुष, किन्नर, हृदयंगम, रूपपाली, किन्नर-किन्नर, अनिंदित, मनोरम, किन्नरोत्तम, रतिप्रिय और ज्येष्ठ ये १० प्रकार के किन्नर जाति के देव होते हैं। इनमें से किंपुरुष और किन्नर ये २ इंद्र हैं- किन्नर के २ इंद्र – किंपुरुष और किन्नर। किंपुरुष के २ अग्रदेवियाँ – अवतंसा, केतुमती। किन्नर के २ अग्रदेवियाँ – रतिषेणा,…
व्यंतर देवों के अंतर्गत कुलों के भेदों का वर्णन इन किन्नर आदि व्यंतरों में दस, बारह आदि भेद पाये जाते हैं। इनमें दो-दो इंद्र और इंद्रों के दो-दो अग्रदेवियाँ मानी गई हैं। ये देवियाँ २-२ हजार वल्लभिकाओं से युक्त होती हैं। यथा- किन्नरों के – १० भेद किंपुरुषों के – १० भेद महोरग के –…
व्यंतर देवों के चिन्ह विशेष किन्नर किंपुरुष आदि व्यंतर देवों संबंधी तीनों प्रकार के (भवन, भवनपुर, आवास) भवनों के सामने एक-एक चैत्य वृक्ष है। यथा- किन्नरों के भवनों के सामने – अशोक वृक्ष किंपुरुषों के भवनों के सामने – चंपक वृक्ष महोरग के भवनों के सामने – नागद्रुम वृक्ष गन्धर्व के भवनों के सामने –…