चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी की यमसल्लेखना के अवसर पर सादर समर्पित विनयांजलि
चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी की यमसल्लेखना के अवसर पर सादर समर्पित विनयांजलि विश्ववंद्य जगद्हितैषी चारित्रचक्रवर्ती हे शांतिसागर! इस विकट समय में जब कि अज्ञानरूपी अंधकार में यह जैन समाज अपनी स्वात्मनिधि को ढूंढ रही थी, उस समय आपने ज्ञानरूपी सूर्य बन करके प्रत्येक कोने-कोने में प्रकाश पैâला दिया, सूर्य की किरणों में उष्णता रहती है…