अथ प्रत्येक अर्घ्य
अथ प्रत्येक अर्घ्य दोहा— कुमुदचंद्र आचार्य ने, रचा स्तोत्र महान। मैं भी पूजन के निमित्त, करूँ पार्श्व गुणगान।। अथ प्रथमवलये अष्टकोष्ठोपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् । —वसंततिलका छंद— (१) कल्याणमन्दिरमुदारमवद्य – भेदि – भीताभय – प्रदमनिन्दितमङ्घ्रिपद्मम्। संसारसागर – निमज्जदशेष-जन्तु- पोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य।।१।। —कुसुमलता छंद— पारस प्रभु कल्याण के मंदिर, निज-पर पाप विनाशक हैं। अति उदार हैं भयाकुलित, मानव…