आलोचना पाठ
आलोचना पाठ -दोहा- वंदों पाँचों परम-गुरू, चौबीसों जिनराज। करूँ शुद्ध आलोचना, शुद्धि-करन के काज।।१।। -सखी छंद- सुनिये जिन अरज हमारी, हम दोष किये अति भारी। तिनकी अब निर्वृति काजा, तुम सरन लही जिनराजा।।२।। इस बे ते चउ इंद्री वा, मनरहित सहित जे जीवा। तिनकी नहिं करुणा धारी, निरदइ ह्वै घात विचारी।।३।। समरंभ समारंभ आरंभ, मन…