सुगन्धदशमी कथा (१) बसन्त ऋतु धरती को पीत वर्ण से आच्छादित करके अपनी आभा बिखेर रही है, सरसों के खिले पुष्प नर-नारियों का मन आकृष्ट कर रहे हैं, बसन्तक्रीड़ा के इच्छुक दम्पत्ति वन की ओर विहार कर रहे हैं। काशीनगरी के राज पद्मनाभ अपनी रानी श्रीमती को साथ लेकर बसन्तक्रीड़ा की इच्छा से वन को…
शुद्धात्म दर्शन प्रक्रिया श्री पद्मनन्दिपंचिंवशतिका ग्रन्थ में आचार्यश्री पद्मनन्दि देव ने शुद्धात्म दर्शन की प्रक्रिया को बताते हुए अनेक अधिकारों के माध्यम से बताया है कि— शार्दूलविक्रीडित छन्द— दुर्लक्ष्येपि चिदात्मनि श्रुतवलात्किंचितस्वसंवेदनात्, ब्रूमः िंकचिदिह प्रबोधनिधिभिर्ग्राह्यं न किञ्चिच्छलम्। मोहे राजनि कर्मणाम तितरां प्रौढेन्तराये रिपौ, दृग्बोधावरणद्वये सति मतिस्तादृककुतो मादृशाम्।। अर्थात् जिस प्रकार अमूर्तिक होने के कारण…
………रावण का नाम बुरा क्यों है ?……… ……….(परस्त्री सेवन से हानि)………. रमेश-क्यों भाई महेश! मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि प्रतिवर्ष विजयादशमी को गाँव—गाँव में रावण का पुतला बनाकर क्यों जलाते हैं ? महेश-रमेश ! यह तो बड़े आश्चर्य की बात है कि तुम आज तक इस बात को नहीं जान सके कि…
चोरी करना महापाप है सुरेन्द्र-महेन्द्र भाई! आज तो यार, बड़े खुश नजर आ रहे हो। क्या बात है ? महेन्द्र-खुश तो मैं हमेशा ही रहता हूँ। वैसे आज मैं प्रसन्न तो बहुत हूं लेकिन तुम्हें बताऊंगा नहीं। कहीं तुमने मेरी पोल खोल दी तो ़ ़़ ़ सुरेन्द्र-अरे! तुम्हें मेरे ऊपर इतना भी विश्वास नहीं…
शिकार खेलना पाप है रमेश-क्यों सुरेश! तुम भी मेरे साथ चलोगे क्या आज ? सुरेश-कहाँ मेरे मित्र! बताओ तो,मैं तुम्हारा साथ वैâसे छोड़ सकता हूं। रमेश-तब तो बड़ा मजा आएगा। जंगल में भागते हुए पशुओं पर निशाना लगाने में बड़ा आनंद आता है। सुरेश-अरे राम, राम! यह क्या कहा तुमने ? तब तो मैं किसी…
वेश्यासेवन से हानि अजय-अरे अरे, मैं तो लुट गया, बरबाद हो गया। हे भगवान् ! मुझे किसी तरह तुम्हीं बचा लो। संजय-क्या हो गया मित्र! किसी ने तुम्हें मारा है या धन चुरा लिया है ? अजय-मैं क्या बताऊँ ? मै तो अब कहीं का भी नहीं रहा । घर जाकर माँ—बाप को क्या मुंह…
मद्यपान से हानि विजय-अरे अजय! तुमने आज अपनी वैâसी हालत बना रखी है ? आखिर तुम्हें हुआ क्या है ? जो पागलों जैसी दशा हो रही है। अजय-ऐं ऽऽ-क्या कहा ? पागल तो तुम होंगे। अब मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं करूंगा। मुझे तो अब बहुत अच्छ दोस्त मिल गया है उसके साथ बड़ा मजा…
मांसाहार से हानि कमल-अरे सुनो विमल! तुम इन दिनों कहां रहते हो ? कई दिन से तुमसे भेंट नहीं हुई, मेरा तो तुम्हारे बिना मन ही नहीं लगता। विमल-मेरा भी मन तुम्हारे बिना नहीं लगता, परन्तु क्या करूँ कमल! कई दिनों से मेरी तबियत खराब चल रही है, बड़ी कमजोरी आ गई है यार! अभी…
शिक्षास्पद कहानियाँ जुआ खेलकर भी क्या लखपति बना जा सकता है ? रमेश-अरे वाह, सुरेश! आज तो मजा आ गया। मेरी बाजी फिट बैठ गई और देखते ही देखते मैं पांच सौ रूपये जीत गया। सुरेश-रमेश! जिसे तुम जीत समझते हो, वह तुम्हारी बहुत बड़ी हार है। तुमने भ्रान्ति के कारण उसे जीत समझ रखा…