पंचमेरु पूजा
पंचमेरु पूजा (कविवर द्यानतराय कृत) -गीता छंद- तीर्थंकरों के न्हवन-जलतैं भये तीरथ शर्मदा। तातैं प्रदच्छन देत सुर-गन पंच मेरुन की सदा।। दो जलधि ढाई द्वीप में सब गनत-मूल विराजहीं। पूजौं असी जिनधाम-प्रतिमा होहि सुख दुख भाजहीं।। ॐ ह्रीं पंचमेरुसंबंधि जिनचैत्यालयस्थ-जिनप्रतिमा-समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं पंचमेरुसंबंधि जिनचैत्यालयस्थ-जिनप्रतिमा-समूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।…