लवण समुद्र में ज्योतिषदेव
लवण समुद्र में ज्योतिषदेव लवण समुद्र में ५१०-४८/६१ योजन प्रमाण वाले दो गमन क्षेत्र हैं उन १-१ क्षेंत्रों में २-२ सूर्यचंद्र संचार किया करते हैं एक-एक चंद्र के परिवार में पूर्वोक्त प्रमाण ग्रह, नक्षत्र, तारे कहे गये हैं।
लवण समुद्र में ज्योतिषदेव लवण समुद्र में ५१०-४८/६१ योजन प्रमाण वाले दो गमन क्षेत्र हैं उन १-१ क्षेंत्रों में २-२ सूर्यचंद्र संचार किया करते हैं एक-एक चंद्र के परिवार में पूर्वोक्त प्रमाण ग्रह, नक्षत्र, तारे कहे गये हैं।
कृष्ण-शुक्ल पक्ष पहली से दूसरी गली में प्रवेश करने पर चंद्र मंडल के १६ भागों में से १ राहु के गमन विशेष से ढक जाता है ऐसे ही १५ दिन तक १-१ कला ढकते-ढकते अमावस्या के दिन एक ही कला रह जाती है। प्रतिपदा से राहु के गमन विशेष से १-१ कला खुलती चली जाती…
चंद्र की गलियाँ सूर्य के समान यही ५१०-४८/६१ योजन प्रमाण क्षेत्र ही चंद्र का गमन क्षेत्र है। इस गमन क्षेत्र में चंद्र की १५ गलियाँ हैं। चंद्र बिम्ब प्रमाण ५६/६१ योजन की एक-एक गली है एवं ३५-२१४/४२७ योजन प्रमाण एक-एक गली का अंतराल है। प्रतिदिन दो चंद्रमा आमने-सामने रहते हुए ६२-२३/२२१ मुहूर्त काल में एक…
चक्रवर्ती द्वारा सूर्य के जिनबिम्ब का दर्शन जब सूर्य पहली गली में रहता है तब अयोध्या नगरी के भीतर अपने भवन पर स्थित चक्रवर्ती सूर्य विमान में स्थित जिनबिम्ब का दर्शन करते हैं। चक्रवर्ती की दृष्टि से सूर्य का अंतर ४७२६३-७/२० यो. अर्थात् १८९०५३४००० मील है। चक्रवर्ती के चक्षु इंद्रिय का उत्कृष्ट विषय इतना ही…
दक्षिणायन-उत्तरायण श्रावण कृष्णा प्रतिपदा के दिन जब सूर्य अभ्यंतर मार्ग में रहता है तब दक्षिणायन का प्रांरभ है एवं अंतिम गली में पहुँच कर वापस आना प्रारंभ करने पर उत्तरायण होता है।
एक मुहूर्त और एक मिनट में सूर्य का गमन जब सूर्य प्रथम गली में रहता है, तब एक मुहूर्त में ५२५१-२९/६० योजन गमन करता है। एक गली से दूसरी में जाने से परिधि के बढ़ जाने से गमन क्षेत्र बढ़ जाता है। अंतिम १८४ वीं गली में एक मुहूर्त में ५३०५-१४/६० योजन गमन करता है।…
सूर्य का गमन क्षेत्र सूर्य का गमन क्षेत्र पृथ्वी से ८०० योजन ऊपर जाकर है। १ लाख योजन व्यास वाले इस जम्बूद्वीप के भीतर १८० योजन एवं लवण समुद्र में ३३०-४८/६१ योजन, ऐसा ५१०-३८/६१ योजन प्रमाण गमन क्षेत्र है। इतने प्रमाण गमन क्षेत्र में १८४ गलियाँ हैं। इन गलियोें में दो-दो सूर्य क्रमश: एक-एक गली…
१ चंद्र का परिवार इन ज्योतिषी देवों में चंद्रमा इंद्र है तथा सूर्य प्रतीन्द्र है। अत: एक चंद्र के सूर्य प्रतीन्द्र, ८८ ग्रह, २८ नक्षत्र ६६९७५ कोड़ा-कोड़ी तारे हैं ऐसे परिवार से सहित जम्बूद्वीप में दो चंद्र हैं। सूर्य और चंद्र के ४-४ प्रमुख देवियाँ हैं और प्रत्येक देवी की ४ आश्रित ४-४ हजार देवियाँ…
देवों की आयु चन्द्रमा की उत्कृष्ट आयु·१पल्य १ लाख वर्ष सूर्य की उत्कृष्ट आयु·१ पल्य १ हजार वर्ष शुक्र की उत्कृष्ट आयु·१ पल्य १०० वर्ष बृहस्पति की उत्कृष्ट आयु·१ पल्य की बुध, मंगल आदि की आयु·१/२ पल्य की ताराओं की उत्कृष्ट आयु·१/४ पल्य की ज्योतिष्क देवांगनाओं की आयु अपने-अपने पति की आयु के अर्ध प्रमाण…
सूर्य आदि के बिम्ब में स्थित जिनमंदिर, प्रासाद आदि सभी विमानों के ऊपर चारों तरफ तट वेदी उपवन खंड हैं एवं मध्य में जिनभवन हैं। चारों तरफ देवों के प्रमुख प्रासाद हैं। राजांगण के बाहर विविध प्रकार के उत्तम रत्नों से रचित परिवार देवों के भवन हैंं।