क्या हम भी तीर्थंकर बन सकते हैं?
क्या हम भी तीर्थंकर बन सकते हैं?….. हेमा-बहन सरिता! अब सोलहकारण पर्व आने वाला है। पुरानी महिलायें वो ही घिसी-पिटी रूढ़ियों में पँâस जायेंगी। ये बेचारी अपने हित के लिये कोई नया मार्ग नहीं सोचती हैं। बस वही सोलहकारण की पूजा करना, माला फेरना और भावना सुनना। भला इसमें भी कोई धर्म होता है? धर्म…