जम्बूद्वीप की सभी चीजों का उपसंहार
जम्बूद्वीप की सभी चीजों का उपसंहार जम्बूद्वीप में तीन सौ ग्यारह पर्वत हैं जिनका स्पष्टीकरण— सुमेरु १ गजदंत पर्वत ४ कुलाचल ६ विजयार्ध ३४ यमक ४ वृषभाचल ३४ कांचनगिरि २०० नाभिगिरि ४ दिग्गज पर्वत ८ वक्षार पर्वत १६
जम्बूद्वीप की सभी चीजों का उपसंहार जम्बूद्वीप में तीन सौ ग्यारह पर्वत हैं जिनका स्पष्टीकरण— सुमेरु १ गजदंत पर्वत ४ कुलाचल ६ विजयार्ध ३४ यमक ४ वृषभाचल ३४ कांचनगिरि २०० नाभिगिरि ४ दिग्गज पर्वत ८ वक्षार पर्वत १६
भरत ऐरावत के म्लेच्छ खंडों की व्यवस्था पाँच म्लेच्छ खंड और विद्याधर श्रेणियों में अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी में क्रम से चतुर्थ और तृतीय काल के प्रारंभ से अंत तक हानि व वृद्धि होती रहती है अर्थात् इन स्थानों में अवसर्पिणी में चतुर्थ काल के प्रारंभ से अंत तक हानि और उत्सर्पिणी काल में तृतीय काल…
प्रथम काल का वर्णन तदनंतर सुषमसुषमा नामक काल प्रविष्ट होता है काल स्वभाव से मनुष्य तिर्यंचों की आयु, अवगाहना आदि आगे बढ़ती जाती है। उस समय यह पृथ्वी उत्तम भोगभूमि के नाम से प्रसिद्ध हो जाती है। उस काल के अंत में मनुष्यों की आयु तीन पल्य प्रमाण और ऊँचाई तीन कोस प्रमाण है। उस…
द्वितीय काल इसके बाद सुषमा नामक काल प्रवेश करता है। इस काल के प्रथम प्रवेश में मनुष्य तिर्यंचों की आयु आदि पूर्व के ही समान होती है परन्तु काल स्वभाव से उत्तरोतर बढ़ती जाती है। उस समय के नर-नारी दो कोस ऊँचे, पूर्ण चंद्रमा के सदृश मुख वाले, बहुत विनय एवं शील से सम्पन्न होते…
तृतीय काल इसके बाद सुषम दुष्षमा काल के प्रारंभ में मनुष्यों की आयु एक पूर्व कोटि वर्ष प्रमाण होती है। उस समय उन मनुष्यों की ऊँचाई पाँच सौ धनुष प्रमाण होती है, पुन: क्रम से उत्तरोत्तर आयु और ऊँचाई प्रत्येक काल के बल से बढ़ती ही जाती है। इस समय यह पृथ्वी जघन्य भोग भूमि…
चतुर्थ काल चतुर्थ काल के प्रवेश में ऊँचाई सात हाथ और आयु एक सौ बीस वर्ष प्रमाण होती है। इस समय मनुष्य के पृष्ठ भाग की हड्डियाँ चौबीस होती हैं। तथा मनुष्य पाँचवर्ण वाले शरीर से युक्त, मर्यादा, विनय, लज्जा से सहित संतुष्ट और सम्पन्न होते हैं। इस काल में चौबीस तीर्थंकर होते हैं उनमें…
पंचम काल पुन: दुष्षमाकाल प्रवेश करता है। इस काल में मनुष्य तिर्यंचों का आहार बीस वर्ष तक पहले के समान रहता है। इस काल के प्रथम प्रवेश में उत्कृष्ट आयु बीस वर्ष और ऊँचाई तीन हाथ प्रमाण होती है इस काल में एक हजार वर्षों के शेष रहने पर भरतक्षेत्र में चौदह कुलकरों की उत्पत्ति…
उत्सर्पिणी का पहला छठा काल इसके पश्चात उत्सर्पिणी इस नाम से विख्यात काल प्रवेश करता है इसके छह भेदों में से प्रथम अतिदुष्षमा, दुष्षमा, दुष्षमसुषमा, सुषमदुष्षमा, सुषमा और सुषमा-सुषमा काल क्रम से आते हैं। प्रथम अतिदुष्षमा काल छठे काल के सदृश छठा काल ही कहलाता है। उत्सर्पिणी काल के प्रारंभ में पुष्कर मेघ सात दिन…
छठे काल का वर्णन इसके बाद तीन वर्ष आठ माह और एक पक्ष के बीत जाने पर महाविषम अतिदुष्षमा नामक छठा काल प्रविष्ट होता है। इस काल के प्रवेश में शरीर की ऊँचाई साढ़े तीन हाथ पृष्ठ भाग की हड्डिंयाँ बारह और उत्कृष्ट आयु बीस वर्ष प्रमाण होती है। उस काल में सब मनुष्यों का…
पंचम काल का वर्णन चतुर्थ काल में तीन वर्ष, आठ मास, एक पक्ष अवशिष्ट रहने पर श्री वीर प्रभु सिद्ध पद को प्राप्त हुये हैं। अर्थात् वीर भगवान के निर्वाण होने के पश्चात् तीन वर्ष, आठ मास और एक पक्ष के व्यतीत हो जाने पर दुष्षमाकाल नामक पंचम काल प्रवेश करता है। इस पंचम काल…