मुक्तिगामी जीवों का वर्णन
मुक्तिगामी जीवों का वर्णन सौधर्म इंद्र तथा इंद्र की शचीदेवी, सौधर्म इंद्र के सोम, यम, वरुण, कुबेर, लोकपाल, सानत्कुमार आदि दक्षिण इंद्र, सभी लौकांतिक देव और सर्वार्थसिद्धि के देव नियम से एक भवावतारी होते हैं।
मुक्तिगामी जीवों का वर्णन सौधर्म इंद्र तथा इंद्र की शचीदेवी, सौधर्म इंद्र के सोम, यम, वरुण, कुबेर, लोकपाल, सानत्कुमार आदि दक्षिण इंद्र, सभी लौकांतिक देव और सर्वार्थसिद्धि के देव नियम से एक भवावतारी होते हैं।
लौकांतिक देवों की ऊँचाई आयु आदि लौकांतिक देवों में प्रत्येक के शरीर की ऊँचाई ५ हाथ प्रमाण है। ये लौकांतिक देव, देवी आदि परिवार से रहित परस्पर में हीनाधिकता से रहित, विषयों से विरक्त, देवों में ऋषि के समान होने से देवर्षि कहलाते हैं। अनित्य आदि बारह भावनाओं से चिंतवन में तल्लीन, सभी इंद्रों, देवों…
लौकान्तिक देवों का वर्णन पाँचवें ब्रह्म स्वर्ग के अंत में लौकांतिक देव रहते हैं। ईशान आदि आठ दिशाओं में गोलाकार प्रकीर्णक विमानों में ये यथाक्रम से रहते हैं। लौकांतिक देवों के ८ भेद होते हैं-सारस्वत, आदित्य, वन्हि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध और अरिष्ट। ईशान दिशा में सारस्वत, पूर्व दिशा में आदित्य, आग्नेय दिशा में वन्हि…
भवनों का प्रमाण ऊँचाई लंबाई चौड़ाई अध. ग्रै. २०० ४० २० मध्य. ग्रै. १५० ३० १५ उप.ग्रै. १०० २० १० नवअनुदिश में भवनों की ऊँचाई ५० योजन, लंबाई १० योजन एवं चौड़ाई ५ योजन मात्र है ऐसे ही अनुत्तरों में भवनों की ऊँचाई २५ योजन, लंबाई ५ योजन और चौड़ाई २-१/२ योजन मात्र है। जिनलिंगधारी…
कल्पातीतों का वर्णन नवग्रैवेयक से लेकर सवार्थसिद्धि पर्यंत देव ‘अहमिन्द्र’ होते हैं अत: इनके प्रतीन्द्र आदि परिवार देव नहीं होते हैं और न देवियाँ ही होती हैं। इन कल्पातीतों में उपपाद सभायें, जिनभवन, दिव्यरत्नमय प्रासाद, अभिषेक सभा, संगीत शाला आदि होते हैं एवं चैत्य वृक्ष भी होते हैं। अधस्तन, मध्यम और उपरिम ग्रैवेयकों के इंद्र…
इंद्रों के यान विमान सौधर्म इंद्र का ‘वालकु’ नामक यान विमान है। ऐसे ईशान आदि इंद्रों के यान विमान पुष्पक, सोमनस, श्रीवृक्ष, सर्वतोभद्र आदि सुंदर नाम वाले हैं। इनमें से प्रत्येक ‘यानविमान’ १ लाख योजन लम्बे और चौड़े हैं। ये विमान दो प्रकार के हैं- १. विक्रिया से उत्पन्न, २. स्वभाव से उत्पन्न। विक्रिया से…
देवियों के भवन इंद्र प्रासाद के चारों ओर देवी और वल्लभाओं के अनेकों उत्तम रत्नमय दिव्य भवन हैंं इन देवियों के भवनों की ऊँंचाई ५०० योजन, चौड़ाई ५० योजन एवं लम्बाई १०० योजन है। वल्लभाओं के भवनों की ऊँचाई ५२० योजन, चौड़ाई ५२ योजन लम्बाई १०४ योजन प्रमाण है। इन सभी भवनों में षट् ऋतुओं…
सुधर्मा सभा का वर्णन सौधर्म इंद्र के भवन में ईशान दिशा में ३०० कोस ऊँची, ४०० कोस लम्बी २०० कोस विस्तृत ‘सुधर्मा’ नामक सभा है। वेदिका आदि से सुंदर इस सभा गृह के द्वारों की ऊँचाई ६४ कोस एवं विस्तार ३२ कोस हैै। इस रमणीय सुधर्मा सभा में सौधर्म इंद्र बहुत से परिवार से युक्त…
उपपाद गृह और जिनभवन उस मानस्तम्भ के पास (ईशान दिशा में) ८ योजन ऊँचा, लम्बा और इतना ही चौड़ा उपपाद गृह है, उस उपपाद गृह में दो रत्नमयी शय्या हैं। यहीं पर इंद्र का जन्म स्थान है। उसी दिशा में इस उपपाद गृह के पास बहुत से शिखरों से युक्त पांडुक वन के जिनभवन सदृश…
न्यग्रोध वृक्ष इंद्र भवनों के आगे न्यग्रोध वृक्ष होते हैं ये एक-एक वृक्ष पृथ्वीकायिक और जम्बूवृक्ष के सदृश हैं। इन वृक्षों के मूल में प्रत्येक दिशा में एक-एक जिन प्रतिमा विराजमान हैं। जिनके चरणों में सतत शक्रादि नमस्कार करते हैं।