६ भोगभूमि
६ भोगभूमि हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र में जघन्य भोगभूमि है। हरि और रम्यक क्षेत्र में मध्यम भोगभूमि है एवं देवकुरु उत्तरकुरु में उत्तम भोगभूमि है।
६ भोगभूमि हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र में जघन्य भोगभूमि है। हरि और रम्यक क्षेत्र में मध्यम भोगभूमि है एवं देवकुरु उत्तरकुरु में उत्तम भोगभूमि है।
जम्बूद्वीप की ३४ कर्मभूमि भरत, ऐरावत और पूर्व विदेह, पश्चिम विदेह की ३२ ऐसी ३४ कर्मभूमियाँ हैं।
ऐरावत क्षेत्र का वर्णन शिखरी पर्वत के उत्तर और जम्बूद्वीप की जगती के दक्षिण भाग में भरत क्षेत्र के सदृश ऐरावत क्षेत्र स्थित है। इस क्षेत्र के मध्य भाग में विजयार्ध पर्वत के ऊपर स्थित कूटों और नदियों के नाम भिन्न हैं। सिद्ध, ऐरावत, खण्डप्रपात, माणिभद्र, विजयार्ध, पूर्णभद्र, तिमिश्रगुह, ऐरावत और वैश्रवण ये नौ कूट…
शिखरी पर्वत का वर्णन इस क्षेत्र के उत्तर भाग में ‘शिखरी’ नामक अंतिम कुल पर्वत है इसका वर्णन हिमवन् के सदृश है। विशेष यही है कि यहाँ कूट, द्रह, देव, देवी और नदियों के नाम भिन्न हैं। इस पर्वत पर प्रथम सिद्धकूट, शिखरी, हैरण्यवत, रसदेवी, रक्ता, लक्ष्मी, काँचन, रक्तवती, गंधवती, ऐरावत और मणिकांचन ये ११…
हैरण्यवत क्षेत्र का वर्णन यह हैरण्यवत क्षेत्र हैमवत के सदृश है। इसमें जघन्य भोग भूमि की व्यवस्था है। यहाँ के भी द्रह, नाभिगिरि और नदियों के नाम भिन्न हैं। इस क्षेत्र के मध्य भाग में ‘गंधवान’ नामक नाभिगिरि पर्वत है इसके ऊपर स्थित भवन में प्रभास नामक देव निवास करता है। पुंडरीक सरोवर के उत्तर…
रुक्मि पर्वत का वर्णन रम्यक भोग भूमि के उत्तर में रुक्मि पर्वत है। इसका संपूर्ण वर्णन महाहिमवान् के सदृश है। विशेष इतना है कि यहाँ उन पर कूट, द्रह और देवियों के नाम भिन्न हैं। सिद्ध, रुक्मि, रम्यक, नरकांता, बुद्धि, रुप्यकूला, हैरण्यवत और मणिकांचन ये आठ कूट रुक्मि पर्वत पर हैं।इनमें से प्रथम कूट पर…
रम्यक क्षेत्र का वर्णन रम्यक क्षेत्र का वर्णन हरि क्षेत्र के सदृश अर्थात् मध्यम भोग भूमि रूप है। इसके बहुमूल्य भाग में पद्मनामक नाभिगिरि स्थित है। केसरी सरोवर के उत्तर द्वार से निकली हुई ‘नरकांता’ नदी उत्तर की ओर गमन करती हुई ‘नरकांत कुण्ड’ में गिरकर उत्तर की ओर से निकलती है। पश्चात् वह नदी…
केसरी सरोवर का वर्णन नीलगिरि पर स्थित सरोवर ‘केसरी’ नाम वाला है जो कि तिगिंच्छ के समान वर्णन से सहित है इस द्रह के मध्य में रहने वाले कमल पर ‘कीर्ति’ देवी निवास करती है। इस देवी का सब परिवार धृतिदेवी के सदृश है। यह देवी दस धनुष ऊँची और अनुपम लावण्य से परिपूर्ण है।…
नील पर्वत का वर्णन दोनों विदेहों के उत्तर भाग में निषध के समान नील पर्वत है। विशेष इतना है कि इस पर्वत पर स्थित, कूटों, देव-देवियों, द्रहों के नाम अन्य हैं। सिद्ध, नील, पूर्व विदेह, सीता, कीर्ति, नारी, अपरविदेह, रम्यक और अपदर्शन ऐसे नौ कूट इस नील पर्वत पर हैं। इनमें से प्रथम कूट पर…
विदेह क्षेत्र में कितनी चीजे हैं? विदेह क्षेत्र का विस्तार ३३६८४-४/१९ योजन है। नीलपर्वत और मेरु के मध्य में उत्तरकुरु है एवं मेरु और निषध के मध्य में देवकुरु स्थित है। विदेह के विस्तार में से मंदरपर्वत के विस्तार को घटा कर आधा करने पर कुरुक्षेत्रों का विस्तार होता है (३३६८४-४/१९-१००००)´२·११८४२-२/१९ अर्थात् ग्यारह हजार आठ…