उत्सेधांगुल से किनका प्रमाण है?
उत्सेधांगुल से किनका प्रमाण है? देव, मनुष्य, तिर्यंच एवं नारकियों के शरीर की ऊँचाई का प्रमाण और चारों प्रकार के देवों के निवास स्थान व नगर आदि का प्रमाण उत्सेध अंगुल, उत्सेध कोस, से होता है।
उत्सेधांगुल से किनका प्रमाण है? देव, मनुष्य, तिर्यंच एवं नारकियों के शरीर की ऊँचाई का प्रमाण और चारों प्रकार के देवों के निवास स्थान व नगर आदि का प्रमाण उत्सेध अंगुल, उत्सेध कोस, से होता है।
कोस एवं योजन बनाने की विधि पुद्गल के सबसे छोटे अणु को परमाणु कहते हैं। ऐसे अनंतानंत परमाणुओं का १ अवसन्नासन्न ८ अवसन्नासन्न का १ सन्नासन्न ८ सन्नासन्न का १ त्रुटिरेणु ८ त्रुटिरेणु का १ त्रसरेणु ८ त्रसरेणु का १ रथरेणु ८ रथरेणु का-उत्तम भोग भूमिज के बाल का १ अग्रभाग। उत्तमभोगभूमि के बाल के…
त्रस नाली का वर्णन लोक के बहुमध्य भाग में एक राजू चौड़ी, एक राजू मोटी और कुछ कम १३ राजू ऊँची त्रसनाली है, जो कि त्रस जीवों का निवास क्षेत्र है, अर्थात् इस त्रसनाली के भीतर ही त्रस जीव पाये जाते हैं बाहर नहीं। तेरह राजू में कुछ कम जो कहा है उस कमी का…
ऊर्ध्वलोक का घनफल मध्यलोक में पूर्व-पश्चिम दिशा की चौड़ाई १ राजू, आगे ब्रह्म स्वर्ग के पास ५ राजू, दोनों को मिलाने से १±५·६ राजू हुए। इसे आधा करके ६´२·३, दक्षिण-उत्तर की मोटाई ७ राजू से गुणा करके ३²७·२१ हुए, इसमें ब्रह्मस्वर्ग तक की ऊँचाई ३-१/२ राजू का गुणा करके २१²३-१/२·७३-१/२ राजू हुए। यह मध्यलोक से…
अधोलोक का घनफल लोक के नीचे पूर्व-पश्चिम चौड़ाई ७ राजू और मध्यलोक में १ राजू इन दोनों को मिलाने से ७±१·८ राजू हुए। पुन: इसे आधा करने से ८´२·४, इसमें दक्षिण-उत्तर की मोटाई ७ राजू का गुणा करने से ४²७·२८ राजू हुये। इसमें अधोलोक की ऊँचाई ७ राजू से गुणा करने से २८²७·१९६ राजू हुए।…
लोक का घनफल यह लोक तल में ७ राजू, मध्य में १, पाँचवें स्वर्ग में ५, और अंत में १ राजू है। इन चारों स्थानों की चौड़ाई को जोड़ देने से ७±१±५±१·१४ राजू हुए। इस १४ में ४ का भाग देने से १४´४·३-१/२ राजू हुए। इसमें लोक के दक्षिण-उत्तर की मोटाई का गुणा कर देने…
वातवलयों का वर्णन इस लोकाकाश को चारों तरफ से वेष्टित करके तीन वातवलय हैं। ये वायुकायिक जीवों के शरीर स्वरूप हैं। यद्यपि वायु अस्थिर स्वभाव वाली है फिर भी ये तीनों वातवलय स्थिर स्वभाव वाले वायुमण्डल हैं। इनके (१) घनोदधिवातवलय (२) घनवातवलय एवं (३) तनुवातवलय ये तीन भेद हैं। घनोदधिवात गोमूत्र वर्ण वाला है, घनवात…
प्रथम स्वर्ग से सिद्धशिला तक लोक की चौड़ाई बढ़ने-घटने का क्रम मध्यलोक में —१ राजू सौधर्म, ईशान स्वर्ग के अंत में चौड़ाई —२-५/७ राजू सानत्कुमार, माहेन्द्र के अंत में चौड़ाई —४-३/७ राजू ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर के अंत में चौड़ाई —५ राजू लांतव, कापिष्ठ स्वर्ग के अंत में चौड़ाई —४-३/७ राजू शुक्र-महाशुक्र स्वर्ग के अंत में चौड़ाई —३-६/७…
ऊर्ध्व लोक में राजू के प्रमाण का वर्णन मध्यलोक के ऊपरी भाग में सौधर्म विमान के ध्वजदण्ड तक १ लाख ४० योजन कम १-१/२ राजू प्रमाण ऊँचाई है। इसके आगे माहेन्द्र और सानत्कुमार के ऊपरी भाग तक १-१/२ राजू पूर्ण होता है। अनंतर ब्रह्मोत्तर के ऊपरी भाग में १/२ राजू, कापिष्ठ के ऊपरी भाग में…
अधोलोक से मध्यलोक तक की चौड़ाई घटने का क्रम अधोलोक के तल भाग में—७ राजू सातवीं पृथ्वी के निकट—६-१/७ राजू छठी पृथ्वी के निकट—५-२/७ राजू पाँचवी पृथ्वी के निकट—४-३/७ राजू चौथी पृथ्वी के निकट—३-४/७ राजू तीसरी पृथ्वी के निकट—२-५/७ राजू दूसरी पृथ्वी के निकट—१-६/७ राजू प्रथम पृथ्वी के निकट—१राजू मात्र सम्पूर्ण मध्य लोक की चौड़ाई…