जम्बूद्वीप का स्पष्टीकरण चार्ट नं-१
जम्बूद्वीप का स्पष्टीकरण चार्ट नं-१
श्रुतावतार व्रतकथा. व्रतविधि – ज्येष्ठ शु. १ दिवशीं या व्रत ग्राहकांनीं प्रातःकाळीं शुद्ध जलाने अभ्यंगस्नान करून अंगावर पवित्र दृढ धौतवस्ने धारण करावींत सर्व पूजाद्रव्ये हातीं घेऊन जिनालयास जावें. मंदिरास तीन प्रदक्षिणा घालून ईयापथशुद्धिपूर्वक जिनेंद्रास सक्तीनें साष्टांग नमस्कार करावा. मंडप श्रृंगार करावा. पीठावर पंचपरमेष्ठी प्रतिमा व श्रुतस्कंधयंत्र, यक्ष, यक्षो यांना स्थापून त्यांचा पंचामृतांनीं अभिषेक करावा….
जम्बूद्वीप के भरत आदि क्षेत्रों एवं पर्वतों का प्रमाण भरत क्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप के विस्तार का १९०वाँ भाग है। अर्थात् योजन अर्थात् २१०५२६३ मील है। भरत क्षेत्र के आगे हिमवन पर्वत का विस्तार भरत क्षेत्र से दूना है। इस प्रकार आगे-आगे क्रम से पर्वतों से दूना क्षेत्रों का तथा क्षेत्रों से दूना पर्वतों का…
जम्बूद्वीप का वर्णन इस मध्यलोक में १ लाख योजन व्यास वाला अर्थात् ४०००००००० (४० करोड़) मील विस्तार वाला जम्बूद्वीप स्थित है। जम्बूद्वीप को घेरे हुये २ लाख योजन विस्तार (व्यास) वाला लवण समुद्र है। लवण समुद्र को घेरे हुए ४ लाख योजन व्यास वाला धातकीखण्ड द्वीप है। धातकीखण्ड को घेरे हुए ८ लाख योजन व्यास…
मध्यलोक का वर्णन मध्यलोक १ राजू चौड़ा और १ लाख ४० योजन१ ऊँचा है। यह चूड़ी के आकार का है। इस मध्यलोक में असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्र हैं। १. असंख्यातों योजनों का १ राजू होता है और १४ राजू ऊँचे लोक में ७ राजू में नरक एवं ७ राजू में स्वर्ग हैं। इन दोनों…
तीन लोक की ऊँचाई का प्रमाण तीन लोक की ऊँचाई १४ राजू प्रमाण है एवं मोटाई सर्वत्र ७ राजू है। तीन लोक के जड़ भाग से लोक की ऊँचाई का प्रमाण—अधोलोक की ऊँचाई · ७ राजू। इसमें ७ नरक हैं। प्रथम नरक के ऊपर की पृथ्वी का नाम चित्रा पृथ्वी है। ऊर्ध्व लोक की ऊँचाई…
सुगंधदशमी व्रत जम्बूद्वीप के विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में शिवमंदिर नाम का एक नगर है। वहाँ का राजा प्रियंकर और रानी मनोरमा थी सो वे अपने धन, यौवन आदि के ऐश्वर्य में मदोन्मत्त हुए जीवन के दिन पूरे करते थे। धर्म किसे कहते हैं, वह उन्हें मालूम भी न था। एक समय सुगुप्त नाम के…
सुगन्धदशमी कथा (१) बसन्त ऋतु धरती को पीत वर्ण से आच्छादित करके अपनी आभा बिखेर रही है, सरसों के खिले पुष्प नर-नारियों का मन आकृष्ट कर रहे हैं, बसन्तक्रीड़ा के इच्छुक दम्पत्ति वन की ओर विहार कर रहे हैं। काशीनगरी के राज पद्मनाभ अपनी रानी श्रीमती को साथ लेकर बसन्तक्रीड़ा की इच्छा से वन को…
शुद्धात्म दर्शन प्रक्रिया श्री पद्मनन्दिपंचिंवशतिका ग्रन्थ में आचार्यश्री पद्मनन्दि देव ने शुद्धात्म दर्शन की प्रक्रिया को बताते हुए अनेक अधिकारों के माध्यम से बताया है कि— शार्दूलविक्रीडित छन्द— दुर्लक्ष्येपि चिदात्मनि श्रुतवलात्किंचितस्वसंवेदनात्, ब्रूमः िंकचिदिह प्रबोधनिधिभिर्ग्राह्यं न किञ्चिच्छलम्। मोहे राजनि कर्मणाम तितरां प्रौढेन्तराये रिपौ, दृग्बोधावरणद्वये सति मतिस्तादृककुतो मादृशाम्।। अर्थात् जिस प्रकार अमूर्तिक होने के कारण…