मंगलाचरण
मंगलाचरण -स्त्रग्धरा- कायोत्सर्गायताङ्गो जयति जिनपतिर्नाभिसूनुर्महात्मा मध्यान्हे यस्य भास्वानुपरि परिगतो राजतेस्मोग्रमूर्ति:।। चक्रं कर्मेन्धनानामतिबहुदहतो दूरमौदास्यवातस्फूर्यत्सद्ध्यानवह्नेरिव रुचिरतर: प्रोद्गतो विस्फुलिङ्ग:।। अर्थ—दुपहर के समय जिस आदीश्वर भगवान के ऊपर रहा हुआ तेजस्वीसूर्य ज्ञानावरणादि कर्मरूपी ईंधन को पल भर में भस्म करने वाली तथा वैराग्यरूपी पवन से जलाई हुई, ध्यानरूपी अग्नि से उत्पन्न हुवे मनोहर फुलिंगा के समान जान पड़ता है…