निषीधिका दण्डक एवं अयोध्या तीर्थ
निषीधिका दण्डक एवं अयोध्या तीर्थ णमो जिणाणं ३, णमो णिस्सिहीए ३, णमोत्थु दे ३। अनेक भवगहनविषमव्यसनप्रापणहेतून् कर्मारातीन् जयंतीति जिना: साकल्येन घातिकर्मक्षयात्प्राप्तकेवलज्ञानादिचतुष्टया अर्हन्त:। तेषां नमो नमस्कारोऽस्तु। जिन को-अर्हंतों को नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो। अनेक भवों में गहन-कठिन ऐसे विषम-भयंकर जो व्यसन-दु:ख हैं उनको प्राप्त कराने में हेतु ऐसे जो कर्म-ज्ञानावरण आदि हैं वे ही…