प्रवचन नं.-४ यदि चतुर्थकालीन मुनि की भावना भाते हो, तो पहले चतुर्थकालीन श्रावक बनकर दिखाओ
प्रवचन नं.-४ यदि चतुर्थकालीन मुनि की भावना भाते हो, तो पहले चतुर्थकालीन श्रावक बनकर दिखाओ अर्हन्तो मंगलं कुर्यु:, सिद्धा: कुर्युश्च मंगलम्। आचार्या: पाठकाश्चापि, साधवो मम मंगलम् ।। भव्यात्माओं! जैसे सृष्टि, संसार, जैनधर्म अनादि है-शाश्वत है, वैसे ही मुनिपरम्परा, चतुर्विध संघ परम्परा-मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका की परम्परा भी अनादि है। भगवन पुष्पदंतनाथ से धर्मनाथ भगवान के…