आलोचनाधिकार
आलोचनाधिकार -शार्दूलविक्रीडित– यद्यानन्दविधिं भवन्तममलं तत्त्वं मनोगाहते त्वत्रामस्मृतिलक्षणो यदि महामन्त्रोऽस्त्यनन्तप्रभ:। यानं च त्रितयात्मके यदि भवेन्मार्गे भवद्दर्शिते को लोकेऽत्र सतामभीष्टविषये विघ्नो जिनेश प्रभो।।१।। अर्थ —हे जिनेश! हे प्रभो! सज्जनों का मन अंतरंग तथा बहिरंग मल से रहित होकर तत्त्व स्वरूप तथा वास्तविक आनन्द के निधान आपको अवगाहन (आश्रयण) करता है और यदि उनके मन में आपके नाम…