दशलक्षणधर्म का कथन उत्तमक्षमाधर्म का स्वरूप
दशलक्षणधर्म का कथन उत्तमक्षमाधर्म का स्वरूप -मालिनी- जडजनकृतबाधाक्रोधहासप्रियादावपि सति न विकारं यन्मनो याति साधो:। अमलविपुलचित्तैरुत्तमा सा क्षमादौ शिवपथपथिकानां सत्सहायत्वमेति।।८२।। अर्थ—मूर्खजनों कर किये हुवे बंधन, हास्य आदि के होने पर तथा कठोर वचनों के बोलने पर जो साधु अपने निर्मल धीर-वीर चित्त से विकृत नहीं होता, उसी का नाम उत्तम क्षमा है तथा वह उत्तमक्षमा मोक्षमार्ग…