बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज एवं उनकी निर्दोष परम्परा
बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज एवं उनकी निर्दोष परम्पर देव, शास्त्र और गुरु ये तीन रत्न जैनशासन की परम्परा को अक्षुण्ण रखने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भगवान ऋषभदेव से महावीर तक चौबीसों तीर्थंकर के मध्य सात बार (भगवान पुष्पदंत से लेकर धर्मनाथ तक के तीर्थ में) धर्मतीर्थ का विच्छेद हुआ…