प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जीवन दर्शन
प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जीवन दर्शन
प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जीवन दर्शन
अनाधिनिधन महामंत्र, तीर्थ आदि जो अनादि-अनंत हैं (आज जो उपलब्ध हैं) १. णमोकार मंत्र अनादि है। २. चत्तारि मंगल पाठ अनादि है। ३. दो तीर्थ अनादि हैं–अयोध्या, सम्मेदशिखर। ४. मास, तिथियाँ अनादि हैं। श्रावण, भाद्रपद आदि मास, प्रतिपदा, द्वितीया आदि तिथियाँ, कृष्ण-शुक्ल पक्ष। ५. अष्टमी–चतुर्दशीपर्व, नंदीश्वरपर्व, सोलहकारण, दशलक्षण, पंचमेरू व रत्नत्रयपर्व व्रत अनादि हैं। देवगण…
सर्व आर्यिका वंदना जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, चतुर्थ काल से लेकर भी। इस पंचमकाल के अंतिम तक, सर्वश्री संयतिका होंगी।। ब्राह्मी माता से सर्वश्री, माता तक जितनी संयतिका। जो हुईं हो रहीं होवेंगी, मैं नमूँ भक्ति भवदधि नौका।।२।।
चौबीस तीर्थंकर के समवसरण की आर्यिकाओं की वंदना पचास लाख छप्पन सहस, दो सौ तथा पचास। समवसरण की साध्वियां, और अन्य भी खास।। अट्ठाइसों मूलगुण, उत्तर गुण बहुतेक। धारें सबहीं आर्यिका, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।
ऋषभदेव के शासन की आर्यिकाओं की वंदना श्री ऋषभदेव के शासन में, आर्यिका मात अगणित मानी। उनके चरणों में नित्य नमूँ, ये संयतिका पूज्य मानी।। इनकी स्तुति पूजा करके, हम त्याग धर्म को भजते हैं। संसार जलधि से तिरने को, आर्यिका मात को नमते हैं।।३।।
आर्यिका श्री सुंदरी माता आदि की वंदना सुंदरी आर्यिका मात आदि, त्रय लाख पचास हजार कही। मूलोत्तर गुण से भूषित ये, इन्द्रादिक से भी पूज्य कहीं।। इनकी भक्ती स्तुति करके, हम त्याग धर्म को भजते हैं। संसार जलधि से तिरने को, आर्यिका मात को नमते हैं।।२।।
गणिनी-आर्यिका-श्री ब्राह्मी माता की वंदना श्री ऋषभदेव के समवसरण में, ब्राह्मी-गणिनी मानी हैं। श्री ऋषभदेव की पुत्री ये, साध्वी में प्रमुख बखानी हैं।। रत्नत्रय गुणमणि से भूषित, ये शुभ्र वस्त्र को धारे हैं। इनकी स्तुति वंदन भक्ती, हमको भवदधि से तारे है।।१।।
गणिनी आर्यिका श्री ब्राह्मीमातु: स्तुति: सम्यग्दर्शनसंशुद्धां, श्रमणीं श्रुतशालिनीं। श्रीब्राह्मीमार्यिकां वंदे, गणिनीं गुणशालिनीं।।१।। संसारदु:खतो भीत्वा, श्रीपुरुदेवमाश्रिता। दीक्षां स्वीकृत्य मुक्त्यर्थं, ध्यानाध्ययनयो:रता।।२।। रत्नत्रयपवित्रांगा, सन्महाव्रतधारिणीं। समित्याचारसंसक्ता, मनोनिग्रहकारिणी।।३।। पंचेन्द्रियजितावश्य — षट्क्रियादिषु तत्परा। क्रोधाद्यरीन् तनूकर्त्री, मोहमायाविदूरगा।।४।। पाणिपात्रपुटाहारा—मेकशाटकधारिणीं । कायक्लेशतपोरक्तां, ब्राह्मीं च सुंदरीं स्तुवे।।५।। उपवासावमौदर्य—रसत्यागतपांसि या। कर्मारातीन् कृशीकर्तुं, व्यधत्त परया मुदा।।६।। सद्धर्मामृतसंप्रीत्या, ब्रह्व्य आर्या: अपालयत्। जगन्माता हितंकर्त्री, संस्तौमि तामहं मुदा।।७।। परीषहमहाक्लेशा —…
आचार्य श्रीदेशभूषण स्तुति: (बसंततिलका छंद) कारुण्यपुण्यगुणरत्न-समुद्रसूरे!। संसार-वारिनिधिपोत! जगत्प्रपूज्य!।। भव्याब्जभास्कर! ममाद्यगुरो! सुभक्त्या। भो देशभूषणमुनीन्द्र! नमाम्यहं त्वां।।१।। (अनुष्टुप्) जन्ममृत्युभयाद् भीतां तितीर्षुं भववारिधे:। हस्तावलंबनं दत्वा गृहकूपात् समुद्धृत:।।२।। आगमज्ञो गभीर:सन् उपसर्गपरीषहान्! सहिष्णु: शान्तिमूर्तिस्त्वं सुजनप्रीणनक्षम:।।३।। स्मितास्य: क्रोधजिन्मोह मायामत्सरदूरग:। ध्यानाध्ययनयो: सक्तो विकथाशून्यमानस:।।४।। अनाद्यनिधनायोध्यापुर्या उद्धारको भवान्। विंशहस्तप्रमामूर्ते: पुरुदेवस्य कारक:।।५।। सर्वत्रभारते पद्भ्यां विहरन्ननुकंपया। सर्वेषां हितसंशास्ता त्वं निष्कारण बांधव:।।६।। देशस्यभूषण: श्रीमान् देशभूषणयोगिराट्। विश्वशांति प्रकुर्वाणो…
चारित्रचूड़ामणि आचार्य श्री वीरसागर स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) श्रीवीरसागराचार्य:, पट्टसूरिर्हि विश्रुत:। श्रीवीरसागराचार्यं, वंदे भक्त्या पुन: पुन:।।१।। शिष्या: सुशिक्षिता: नित्यं, वीरसागरसूरिणा। नमोऽस्तु भक्तिभावेन, वीरसागरसूरये।।२।। श्रीवीरसागराचार्यात्, ख्याता पट्टपरम्परा। श्रीवीरसागरस्यापि, गांभीर्यादिगुणा: स्थिता:।।३।। श्रीवीरसागराचार्ये, विद्वान्सोऽपि नता मुदा। श्रीवीरसागराचार्य!, कृपां कृत्वा पुनीहि माम्।।४।। सम्यग्ज्ञानमतीप्राप्त्यै, केवलं त्वत्पदद्वयम्। आश्रयामि स्मरामि च, संततं भक्तिभावत:।।५।।