जैनधर्म प्रश्नोत्तर माला
जैनधर्म प्रश्नोत्तर माला…. जैनधर्म प्रश्नोत्तर माला आज के मानव में कलियुग का रूप दिखाई देता है : काव्य रूपक णमोकार महामंत्र की महिमा णमोकार भजन
जैनधर्म प्रश्नोत्तर माला…. जैनधर्म प्रश्नोत्तर माला आज के मानव में कलियुग का रूप दिखाई देता है : काव्य रूपक णमोकार महामंत्र की महिमा णमोकार भजन
णमोकार भजन…….. —शिखरिणी छंद— णमो अरिहंताणं, नमन है अरिहंत प्रभु को। णमो सिद्धाणं में, नमन कर लूँ सिद्ध प्रभु को।। णमो आइरियाणं, नमन है आचार्य गुरु को। णमो उवज्झायाणं, नमन है उपाध्याय गुरु को।।।१।। णमो लोए सव्वसाहूणं पद बताता। नमन जग के सब, साधुओं को करूँ जो हैं त्राता।। परमपद में स्थित, कहें पाँच परमेष्ठि…
णमोकार महामंत्र की महिमा रचयित्री—प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती तर्ज—अरे हट जा रहे ताऊ……….. अरे देखो रे! महिमा मंत्र की, णमोकार की महिमा निराली है।।अरे…।।टेक.।। एक कहानी सुन लो भाई, जैन रामायण में है आई। अरे पशु भी बन गया देव रे, णमोकार की महिमा निराली है।।१।। नगर महापुर में इक श्रेष्ठी, धर्म में उनकी बहुत रुची…
आज के मानव में कलियुग का रूप दिखाई देता है : काव्य रूपक तर्ज-एक था बुल और एक थी बुलबुल……………….. आज के मानव में कलियुग का, रूप दिखाई देता है। राम की धरती पर रावण का, रूप दिखाई देता है।।आज के.।। कहते हैं माँ की ममता, बच्चे पर सदा बरसती है। कोई कह नहीं सके…
जैनधर्म प्रश्नोत्तर माला णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।। प्रश्न १ -णमोकार मंत्र को किसने बनाया ? उत्तर -णमोकार मंत्र अनादिनिधन मंत्र है, इसे किसी ने नहीं बनाया है। प्रश्न २ -णमोकार मंत्र में किनको नमस्कार किया गया है ? उत्तर -पाँच परमेष्ठियों-अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु को नमस्कार…
श्री पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका मंगलाचर 1. धर्मोपदेशामृत .मुनिधर्म का कथन .रत्नत्रयधर्म का कथन .दशलक्षण धर्म का कथन .शुद्धात्मा की परिणतिरूपधर्म का कथन .धर्म की महिमा तथा धर्म के उपदेश 2. दान का उपदेश 3. अनित्यत्वाधिकार 4. एकत्वाधिकार का वर्णन 5. यतिभावना का कथन 6. श्रावकाचार 7. देशव्रतोद्योतन 8. सिद्धपरमेष्ठिका स्तवन 9. आलोचनाधिकार 10. सद्बोधचंद्रोदयाधिकार 11. निश्चयपंचाशत् 12….
ब्रह्मचर्याष्टक भवविवर्धनमेव यतो भवेदधिकदु:खकरं चिरमंगिनाम्। इति निजांगनयापि न तन्मतं मतिमतां सुरतं किमतोन्यथा।।१।। अर्थ —जिस मैथुन के करने से संसार की ही वृद्धि होती है तथा जो मैथुन समस्त जीवों को अत्यन्त दु:ख का देने वाला है इसलिये सज्जन पुरुषों ने उसको अपनी स्त्री के साथ करना भी ठीक नहीं माना है, वे सज्जन दूसरी स्त्रियों…
स्नानाष्टक -शार्दूलविक्रीडित- सन्माल्यादि यदीयसन्निधिवशादस्पृश्यतामाश्रयेद्विण्मूत्रादिभृतं रसादिघटितं बीभत्सु यत्पूति च। आत्मानं मलिनं करोत्यपि शुिंच सर्वाशुचीनामिदं संकेतैकगृहं नृणां वपुरपां स्नानात् कथं शुद्ध्यति।।१।। अर्थ —जिस शरीर के संबंधमात्र से ही उत्तम सुगंधित पुष्पों की बनी हुई माला भी स्पर्श करने योग्य नहीं रहती है और जो शरीर विष्टा-मूत्र आदिक से चौतरफा भरा हुआ है और अनेक प्रकार के रस…
शरीराष्टक -शार्दूलविक्रीडित- दुर्गंधाशुचिधातुभित्तिकलितं संछादितं चर्मणा विण्मूत्रादिभृतं क्षुधादिविलसद्दु:खाखुभिश्छिद्रितम्। क्लिष्टं कायकुटीरकं स्वयमपि प्राप्तं जरावह्निना चेदेतत्तदपि स्थिरं शुचितरं मूढो जनो मन्यते।।१।। अर्थ —यह शरीररूपी झोंपड़ा दुर्गंध तथा अपवित्र वीर्य आदि धातुरूपी भीतों से बना हुआ है और चाम से ढका हुआ है तथा विष्टा-मूत्र आदि से भी भरा हुआ है और इसमें क्षुधा आदिक बलवान दु:खरूपी चूहों ने…
परमार्थविंशति: -शार्दूलविक्रीडित- मोहद्वेषरतिश्रिता विकृतयो दुष्टा: श्रुता: सेविता: बारम्बारमनंतकालविचरत्सर्वांगिभि: ससृतौ। अद्वैतं पुनरात्मनो भगवतो १दुर्लक्ष्यमेकं परं बीजं मोक्षतरोरिदं विजयते भव्यात्मभिर्वंदितम्।।१।। अर्थ —संसार में अनंतकाल से भ्रमण करते हुये प्राणियों ने मोह-द्वेष-राग के आश्रित जो विकार हैं, उनको देखा है, सुना है तथा उनको अनुभव भी किया है fिकन्तु भगवान आत्मा के अद्वैत को न देखा है और…