श्री धर्मजिन स्तुति (हिन्दी काव्य)
श्री धर्मजिन स्तुति (हिन्दी काव्य) हे धर्मधुरन्धर धर्मनाथ! धर्मामृतदायी मेघ तुम्हीं। रत्नों की वर्षा होने से, वह रत्नपुरी थी रत्नमयी।। यह सुतवन्ती सुप्रभावती, पितु भानुराज महिमाशाली। वैसाख सुदी तेरस के दिन, गर्भागम उत्सव था भारी।।१।। तिथि माघ सुदी तेरस शुभ थी, इन्द्रों ने जन्म न्हवन कीना। उस ही तिथि में प्रभु दीक्षा ली, निज पर…