क्रियाकांडचूलिका
क्रियाकांडचूलिका -शार्दूलविक्रीडित- सम्यग्दर्शनबोधवृत्तशमताशीलक्षमाद्यैर्धनै: संकेताश्रयवज्जिनेश्वर भवान् सर्वैर्गुणैराश्रित:। मन्ये त्वय्यवकाशलब्धिरहितै: सर्वेऽत्र लोके वयं संग्राह्या इति गर्वितै: परिहृतो दोषैरशेषैरपि।।११।। अर्थ —हे प्रभो ! हे जिनेश ! निविड जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान,सम्यक्चारित्र, शमता, शील और क्षमा आदिक समस्त गुण हैं उन्होंने संकेत के घर के समान आपका आश्रय किया है इसीलिये आपमें जिन्होंने स्थान को नहीं पाया है और जो…