दान का उपदेश
दान का उपदेश -वसंततिलका- जीयाज्जिनो जगति नाभिनरेन्द्रसूनु: श्रेयो नृपश्च कुरुगोत्रगृहप्रदीप:। याभ्यां बभूवतुरिह व्रतदानतीर्थे सारक्रमे परमधर्मरथस्य चक्रे।।१।। अर्थ — श्री नाभिराजा के पुत्र श्री वृषभ भगवान् सदा इस लोक में जयवंत रहें तथा कुरु गोत्ररूपी घर के प्रकाश करने वाले श्री श्रेयान् राजा भी इस लोक में सदा जयवंत रहें, जिन दोनों महात्माओं की कृपा से…