श्री मज्जिनवरस्तोत्र
श्री मज्जिनवरस्तोत्र दिठ्ठे तुमम्मि जिणवर सहलीहूआइ मज्झ णयणाई। चित्तं गत्तं च लहू अमिएणव सिंचियं जायं।।१।। दृष्टे त्वयि जिनवर सफलीभूतानि मम नयनानि। चित्तं गात्रं च लघु अमृतेनैव सिंचितं जातम्।। अर्थ —हे जिनेश्! हे प्रभो! आपको देखने पर मेरे नेत्र सफल होते हैं तथा मेरा मन और मेरा शरीर ऐसा मालूम होता है कि मानों अमृत से…