प्रशस्ति
“…प्रशस्ति…” -दोहा- चौबीसों तीर्थेश को, नमूँ नमूँ नत माथ। गौतम गणधर को नमूँ, नमूँ सरस्वति मात।।१।। पार्श्वनाथ तीर्थेश को, नमूँ अनन्तों बार। चंद्रप्रभ, महावीर को, नमूँ भक्ति उरधार।।२।। कुंदकुंद आम्नाय में, गच्छ सरस्वती मान्य। बलात्कारगण सिद्ध है, उनमें सूरि प्रधान।।३।। सदी बीसवीं के प्रथम, शांतिसागराचार्य। उनके पट्टाचार्य थे, वीरसागराचार्य।।४।। बाराबंकी नगर में, जिनमंदिर जगवंद्य। इन्द्रध्वज…