४. प्रवचन का फल
४. प्रवचन का फल प्रवचन सुनकर श्रोता मिथ्यात्व, असंयम, प्रमाद और कषाय से डरकर उनसे यथाशक्ति हटकर मोक्षमार्ग में-सम्यक्त्व, संयम और समभाव में प्रवृत्त हो जावे, यही प्रवचन का फल है। इसी फल के साक्षात् और परम्परा ऐसे दो भेद हो जाते हैं। १. साक्षात फल (क) वक्ता का उपदेश ऐसा होना चाहिए कि श्रोतागण…