चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली
चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली
चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली
अनादिनिधन महामंत्र, तीर्थ आदि जो अनादि-अनंत हैं (आज जो उपलब्ध हैं) १. णमोकार मंत्र अनादि है। २. चत्तारि मंगल पाठ अनादि है। ३. दो तीर्थ अनादि हैं–अयोध्या, सम्मेदशिखर। ४. मास, तिथियाँ अनादि हैं। श्रावण, भाद्रपद आदि मास, प्रतिपदा, द्वितीया आदि तिथियाँ, कृष्ण-शुक्ल पक्ष। ५. अष्टमी–चतुर्दशी पर्व, नंदीश्वर पर्व, सोलहकारण, दशलक्षण, पंचमेरू व रत्नत्रय पर्व, व्रत…
प्रशस्ति -दोहा- ऋषभदेव को नित नमूँ, नमूँ अयोध्या तीर्थ। हुए अनंतानंत ही, तीर्थंकर मुनिकीर्त्य।।१।। कुंदकुंद आम्नाय में, गच्छ सरस्वती मान्य। बलात्कारगण सिद्ध है, उनमें सूरि प्रधान।।२।। सदी बीसवीं के प्रथम, शांतिसागराचार्य। उनके पट्टाचार्य थे, वीरसागराचार्य।।३।। देकर दीक्षा आर्यिका, दिया ज्ञानमती नाम। गुरुवर कृपा प्रसाद से, सार्थ हुआ कुछ नाम।।४।। वीर शब्द पच्चीस सौ, उनंचास जग…
श्री भरत स्वामी स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) श्रीभरतश्चक्रवर्ती, त्वं षट्खंडाधिनायक:। श्रीभरतेश्वरं नौमि, भेदविज्ञानप्राप्तये।।१।। भरतेश्वरेण दीक्षा-क्षणात् कैवल्य -माप्तवान्। श्रीभरतेश्वराय मे, नमो नमोस्त्वनंतश:।।२।। भरतात् भारतं वर्षं, पुराणेषु प्रकीर्त्यते। भरतस्य विरक्तिस्तु, गार्हस्थ्येऽपि प्रसिद्ध्यति।।३।। श्री भरतेश्वरे भक्ति:, सदा मे स्याद् भवे भवे। भो! भरतेश! स्वामिन्! त्वं, भेदज्ञानं प्रयच्छ मे।।४।।
त्रैलोक्य वंदनाष्टक (चैत्यवंदनाष्टक) त्रिभुवन के जितने चैत्यालय, अकृत्रिम उनको नित वंदूँ। भव भव के संचित पाप पुंज, उन सबको इक क्षण में खंडूँ।। असुरों के चौंसठ लाख नागसुर, के चौरासी लाख कहे। वायूसुर के छ्यानवे लाख, सुपरण के बहत्तर लक्ष कहें।।१।। विद्युत् अग्नी स्तनित उदधि, दिक् द्वीपकुमार भवनवासी। इन छह में पृथक्-पृथक् जिनगृह, छीयत्तर लक्ष…
तीर्थंकर जन्मभूमि वंदना (मंगलचतुर्विंशतिका) (अनुष्टुप् छंद) अयोध्या मंगलं कुर्या-दनन्ततीर्थकर्र्तृणाम्। शाश्वती जन्मभूमिर्या, प्रसिद्धा साधुभिर्नुता।।१।। ऋषभोऽजिततीर्थेशोऽप्यभिनंदनतीर्थकृत्। श्रीमान् सुमतिनाथश्चा-नन्तनाथजिनेश्वर:।।२।। पंचतीर्थकृतां गर्भ-जन्मकल्याणकादिषु। इन्द्रादिभि: सदा वंद्या, वंद्यते वंदयिष्यते।।३।। संप्रति कालदोषेण, शेषास्तीर्थंकराः पृथक्। संजातास्ता अपिजन्म-भूमयो मंगलं भुवि।।४।। श्रावस्ती मंगलं कुर्यात्, संभवनाथजन्मभू:। तनुतान्मे मन:शुद्धिं, भव्यानां भवहारिणी।।५।। कौशाम्बी मंगलं कुर्यात्, पद्मप्रभस्य जन्मभू:। जिनसूर्यो मनोऽब्जं मे, प्रफुल्लीकुरुतादपि।।६।। वाराणसी जगन्मान्या, मंगलं तनुतान्मम। जन्मभूमि: सुरै: पूज्या,…
चौबीस तीर्थंकर वन्दना -शंभु छंद- जय ऋषभदेव जय अजितनाथ, संभवजिन अभिनंदन जिनवर। जय सुमतिनाथ जय पद्मप्रभ, जिनसुपार्श्व चन्द्रप्रभ जिनवर।। जय पुष्पदंत शीतल श्रेयांस, जय वासुपूज्य जिन तीर्थंकर। जय विमलनाथ जिनवर अनंत, जय धर्मनाथ जय शांतीश्वर।।१।। जय कुंथुनाथ अरनाथ मल्लि, जिन मुनिसुव्रत तीर्थेश्वर की। जय नमिजिन नेमिनाथ पारस, जय महावीर परमेश्वर की।। ये चौबीसोें तीर्थंकर ही,…
श्री ऋषभदेव वन्दना -गीता छंद- हे आदिब्रह्मा! युगपुरुष! पुरुदेव! युगस्रष्टा तुम्हीं। युग आदि में इस कर्मभूमी, के प्रभो! कर्ता तुम्हीं।। तुम ही प्रजापतिनाथ! मुक्ती के विधाता हो तुम्हीं। मैं भक्ति से वंदन करूं, मन वचन तन से नित यहीं।।१।। -शंभु छंद- श्री वृषभसेन आदिक चौरासी, गणधर मुनि चौरासि सहस। ब्राह्मी गणिनी त्रय लाख पचास, हजार…
चौबीस तीर्थंकर वन्दना (समुच्चय वंदना) आवो हम सब करें वंदना, चौबीसों भगवान की। तीर्थंकर बन तीर्थ चलाया, उन अनंत गुणवान की।। जय जय जिनवरं-४ आदिनाथ युग आदि तीर्थंकर, अजितनाथ कर्मारि हना। संभवजिन भव दु:ख के हर्ता, अभिनंदन आनंद घना।। सुमतिनाथ सद्बुद्धि प्रदाता, पद्मप्रभु शिवलक्ष्मी दें। श्री सुपार्श्व यम पाश विनाशा, चन्द्रप्रभू निज रश्मी दें।। केवलज्ञान…
श्री तीर्थंकरस्तुति: (चौबीस तीर्थंकर स्तुति) (संस्कृत में) -अनुष्टुप् छंद- पुरुदेव! नमस्तुभ्यं, युगादिपुरुषाय ते। इक्ष्वाकुवंशसूर्याय, वृषभाय नमो नम:।।१।। नमस्तेऽजितनाथाय, कर्मशत्रुजयाय ते। अजयेशक्ति-लाभार्थ-मजिताय नमो नम:।।२।। भवसंभवदु:खार्त्ति-नाशिने परमेष्ठिने। नमो संभवनाथाया-नंत विभवलब्धये।।३।। गुणसमृद्धियुक्ताय, जिनचंद्राय ते नम:। अभिनंदनदेवाय, नम: स्वगुणवृद्धये।।४।। ध्वस्तकुमतिदेवाय, जन्ममृत्युप्रमाथिने। नमो सुमतिनाथाय, सुष्ठुमतिप्रदायिने।।५।। मुक्तिपद्मासुकांताय, पद्मवर्ण! नमोस्तु ते। पद्मप्रभजिनेशाय, निजलक्ष्म्यै नमो नम:।।६।। भवपाशच्छिदे तुभ्यं, श्रीसुपार्श्व! नमो नम:। संसृतिपार्श्वदूराय, मुक्तिपार्श्वविधायिने।।७।।…