सर्व आर्यिका वंदना
सर्व आर्यिका वंदना जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, चतुर्थ काल से लेकर भी। इस पंचमकाल के अंतिम तक, सर्वश्री संयतिका होंगी।। ब्राह्मी माता से सर्वश्री, माता तक जितनी संयतिका। जो हुईं हो रहीं होवेंगी, मैं नमूँ भक्ति भवदधि नौका।।२।।
सर्व आर्यिका वंदना जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, चतुर्थ काल से लेकर भी। इस पंचमकाल के अंतिम तक, सर्वश्री संयतिका होंगी।। ब्राह्मी माता से सर्वश्री, माता तक जितनी संयतिका। जो हुईं हो रहीं होवेंगी, मैं नमूँ भक्ति भवदधि नौका।।२।।
आर्यिका श्री सुंदरी माता आदि की वंदना सुंदरी आर्यिका मात आदि, त्रय लाख पचास हजार कही। मूलोत्तर गुण से भूषित ये, इन्द्रादिक से भी पूज्य कहीं।। इनकी भक्ती स्तुति करके, हम त्याग धर्म को भजते हैं। संसार जलधि से तिरने को, आर्यिका मात को नमते हैं।।२।।
गणिनी-आर्यिका-श्री ब्राह्मी माता की वंदना श्री ऋषभदेव के समवसरण में, ब्राह्मी-गणिनी मानी हैं। श्री ऋषभदेव की पुत्री ये, साध्वी में प्रमुख बखानी हैं।। रत्नत्रय गुणमणि से भूषित, ये शुभ्र वस्त्र को धारे हैं। इनकी स्तुति वंदन भक्ती, हमको भवदधि से तारे है।।१।।
श्री तीस चौबीसी नामावली स्तुति -शंभु छंद- सिद्धी को प्राप्त हुए होते, होवेंगे भरतैरावत में। ये भूत भवद् भावी जिनवर, मेरे भी रक्षक हों जग में।। इस मध्यलोक के मध्य प्रथित, वर जम्बूद्वीप प्रमुख जानो। उसके दक्षिण में भरत तथा, उत्तर में ऐरावत मानो।।१।। पूरब औ अपर धातकी खंड, द्वीप में दक्षिण उत्तर में। दो…
तीस चौबीसी स्तुति……. सििंद्ध प्राप्ताश्च प्राप्स्यंति, भूता सन्तश्च भाविन:। भरतैरावतोद्भूतास्तीर्थंकरा अवंतु मां।।१।। जंबूद्वीपेऽत्र विख्याते, मध्यलोकस्य मध्यगे। भरतो दक्षिणे भागे, उदीच्यैरावतो मत:।।२।। पूर्वस्मिन् धातकीद्वीपेऽपरधात्र्यामपि त्विमौ। भरतैरावतौ द्वौ द्वौ, दक्षिणोत्तर-भागिनौ।।३।। पूर्वार्धपुष्करेप्येवं, पश्चिमार्धे तथेदृशौ। भरतैरावते क्षेत्रे, अपागुदग्दिशोश्च ते।।४।। पंच भरतक्षेत्राणि, पंचैवैरावतान्यपि। दशैषामार्यखंडेषु, षट्कालपरिवर्तनं।।५।। चतुर्थेऽप्यागते काले चतुा\वशतयो जिना:। तीर्थेश्वरा: भवंतीह, धर्मतीर्थप्रवर्तका:।।६।। भूतकाले भवा एते, वर्तमानेऽप्यनागते। भवंति च भविष्यंति, तेभ्यो…
श्री ऋषभदेव के पुत्र ‘भरत’ से ‘भारत’ अंसावलंबिना ब्रह्मसूत्रेणासौ दधे श्रियम्। हिमाद्रिरिव गांङ्गेन स्रोतसोत्संगसंगिनाम्।।१९८।। (महापुराण पर्व १५) तन्नाम्ना भारतं वर्षमिति हासीज्जनास्पदं। हिमाद्रेरासमुद्राच्च क्षेत्रं चक्रभृतामिदं।।१५९।। (महापुराण पर्व १५) यही बात महापुराण में वर्णित है-‘‘कंधे पर लटकते हुये ‘यज्ञोपवीत’ से वे भरत सुशोभित हो रहे थे।’’ इन भरत के नाम से ही यह देश ‘भारत’ इस नाम…
सम्पूर्ण विद्या एवं कला की जन्मभूमि अयोध्या तीर्थंकर ऋषभदेव राज्यसभा में सिंहासन पर विराजमान थे, उनके चित्त में विद्या और कला के उपदेश की भावना जाग्रत हो रही थी। इसी बीच में ब्राह्मी और सुंदरी दोनों कन्याओं ने आकर पिता को नमस्कार किया। पिता ने आशीर्वाद देते हुये बड़े प्यार से दोनों कन्याओं को अपनी…
इक्ष्वाकुवंशीय सिद्धपरमेष्ठी वंदना (अविच्छिन्न परंपरागतमुक्तिपदप्राप्त १४ लाख सिद्धों की वंदना) —शंभु छंद— ऋषभेश्वर के इक्ष्वाकुवंश में, चौदह लाख प्रमित राजा। निज सुत को राज्यसौंप दीक्षा, ले सिद्ध बने शिव के राजा।। इन अविच्छिन्न सब सिद्धों को, हम मन वच तन से नमते हैं। हम भी उनके समीप पहुँचें, बस यही याचना करते हैं।।१।। १. ॐ…
श्री भरत चक्री के ९२३ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना भरत चक्रि के विवर्द्धनादि-सुत नव सौ तेईस। दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ नत शीश।।१।।
ऋषभदेव के श्री भरत आदि १०१ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना ऋषभदेव के पुत्र सब, भरत आदि शत एक। दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।