पन्द्रहवें तीर्थंकर भगवान धर्मनाथ का जीवन दर्शन
पन्द्रहवें तीर्थंकर भगवान धर्मनाथ का जीवन दर्शन जन्मभूमि-रत्नपुरी (जिला फैज़ाबाद ) उत्तर प्रदेश पिता-महाराज भानुराज माता-महारानी सुप्रभा वर्ण-क्षत्रिय गोत्र-काश्यप वंश-इक्ष्वाकु …
पन्द्रहवें तीर्थंकर भगवान धर्मनाथ का जीवन दर्शन जन्मभूमि-रत्नपुरी (जिला फैज़ाबाद ) उत्तर प्रदेश पिता-महाराज भानुराज माता-महारानी सुप्रभा वर्ण-क्षत्रिय गोत्र-काश्यप वंश-इक्ष्वाकु …
रत्नपुरी तीर्थ पूजा रचयित्री-आर्यिका श्री चंदनामती माताजी स्थापना (कुसुमलता छन्द) श्री तीर्थंकर धर्मनाथ ने, रत्नपुरी में जन्म लिया। धर्मतीर्थ का वर्तन करके, जन्मभूमि को धन्य किया।। पन्द्रहवें तीर्थंंकर की, उस जन्मभूमि को वन्दन है। आह्वानन स्थापन सन्निधिकरण विधी से अर्चन है।। ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीधर्मनाथजन्मभूमिरत्नपुरीतीर्थक्षेत्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीधर्मनाथजन्मभूमिरत्नपुरीतीर्थक्षेत्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…
चौबीस तीर्थंकर पूजा -अथ स्थापना-शंभु छंद- पुरुदेव आदि चौबिस तीर्थंकर, धर्मतीर्थ करतार हुये। इस जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के, आर्यखंड में नाथ हुये।। इन मुक्तिवधू परमेश्वर का, हम भक्ती से आह्वान करें। इनके चरणाम्बुज को जजते, भव भव दु:खों की हानि करें।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवादिचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवादिचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…
मानस्तंभ पूजा -अथ स्थापना (नरेन्द्र छंद)- श्री धर्मनाथ की जन्मभूमि में, जिनमंदिर सन्मुख में। मानस्तंभ बना है सुंदर, शोभे गगनांगण में।। उनमें चारों दिश जिनप्रतिमा, भक्ति भाव से वंदूँ। आह्वानन कर पूजन करके, कर्मशत्रु को खंडूं।।१।। ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथतीर्थंकरमानस्तंभविराजमानजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथतीर्थंकरमानस्तंभविराजमानजिनबिम्बसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ…
भगवान श्री धर्मनाथ जिनपूजा -अथ स्थापना-गीता छंद- श्री धर्मनाथ जिनेन्द्र धर्मामृत पिला के भव्य को। निज आत्म का दर्शन कराया, पथ दिखाया विश्व को।। उनके चरण की वंदना कर, भक्ति से गुण गायेंगे। आह्वान कर पूजें यहाँ, जिनधर्म प्रीति बढ़ायेंगे।। ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ:…
आचार्य श्रीदेशभूषण स्तुति: (बसंततिलका छंद) कारुण्यपुण्यगुणरत्न-समुद्रसूरे!। संसार-वारिनिधिपोत! जगत्प्रपूज्य!।। भव्याब्जभास्कर! ममाद्यगुरो! सुभक्त्या। भो देशभूषणमुनीन्द्र! नमाम्यहं त्वां।।१।। (अनुष्टुप्) जन्ममृत्युभयाद् भीतां तितीर्षुं भववारिधे:। हस्तावलंबनं दत्वा गृहकूपात् समुद्धृत:।।२।। आगमज्ञो गभीर:सन् उपसर्गपरीषहान्! सहिष्णु: शान्तिमूर्तिस्त्वं सुजनप्रीणनक्षम:।।३।। स्मितास्य: क्रोधजिन्मोह मायामत्सरदूरग:। ध्यानाध्ययनयो: सक्तो विकथाशून्यमानस:।।४।। अनाद्यनिधनायोध्यापुर्या उद्धारको भवान्। विंशहस्तप्रमामूर्ते: पुरुदेवस्य कारक:।।५।। सर्वत्रभारते पद्भ्यां विहरन्ननुकंपया। सर्वेषां हितसंशास्ता त्वं निष्कारण बांधव:।।६।। देशस्य भूषण: श्रीमान् देशभूषणयोगिराट्। विश्वशांति…
चारित्रचूड़ामणि आचार्य श्री वीरसागर स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) श्रीवीरसागराचार्य:, पट्टसूरिर्हि विश्रुत:। श्रीवीरसागराचार्यं, वंदे भक्त्या पुन: पुन:।।१।। शिष्या: सुशिक्षिता: नित्यं, वीरसागरसूरिणा। नमोऽस्तु भक्तिभावेन, वीरसागरसूरये।।२।। श्रीवीरसागराचार्यात्, ख्याता पट्टपरम्परा। श्रीवीरसागरस्यापि, गांभीर्यादिगुणा: स्थिता:।।३।। श्रीवीरसागराचार्ये, विद्वान्सोऽपि नता मुदा। श्रीवीरसागराचार्य!, कृपां कृत्वा पुनीहि माम्।।४।। सम्यग्ज्ञानमतीप्राप्त्यै, केवलं त्वत्पदद्वयम्। आश्रयामि स्मरामि च, संततं भक्तिभावत:।।५।।
चारित्रचक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) श्रीशान्तिसागर: सूरि:, प्रथमाचार्य इष्यते। श्रीशान्तिसागराचार्यं, श्रयामि वृत्तलब्धये।।१।। श्रीशांतिसागरेणात्र, मुनिमार्ग: प्रदर्शित:। श्रीशान्तिसागरायाद्य, कोटिशो मे नमो नम:।।२।। श्रीशान्तिसागराचार्यात्, जाता धर्मप्रभावना। श्रीशान्तिसागरस्येह, भाक्तिका मोक्षमार्गिण:।।३।। श्रीशान्तिसागराचार्ये, समाविष्टा गुणा यते:। हे शान्तिसागराचार्य! मामुद्धर भवाब्धित:।।४।।
चौबीस तीर्थंकर वन्दना -शंभु छंद- जय ऋषभदेव जय अजितनाथ, संभवजिन अभिनंदन जिनवर। जय सुमतिनाथ जय पद्मप्रभ, जिनसुपार्श्व चन्द्रप्रभ जिनवर।। जय पुष्पदंत शीतल श्रेयांस, जय वासुपूज्य जिन तीर्थंकर। जय विमलनाथ जिनवर अनंत, जय धर्मनाथ जय शांतीश्वर।।१।। जय कुंथुनाथ अरनाथ मल्लि, जिन मुनिसुव्रत तीर्थेश्वर की। जय नमिजिन नेमिनाथ पारस, जय महावीर परमेश्वर की।। ये चौबीसोें तीर्थंकर ही,…
चतुर्विंशतिजिनस्तोत्रम् -उपजाति छंद- श्रीनाभिसूनुर्भुवनैकसूर्य:, श्रीधर्मतीर्थस्य प्रवर्तको य:। भव्यैकबंधुर्जगदेकनाथ:, तमादिदेवं प्रणमामि नित्यं।।१।। विजित्य सर्वं किल कर्मशत्रून्, अजेयशक्ति-हर््यजितो जिनेश:। सौख्याकरोऽनंतगुणाकरो य:, द्वितीयतीर्थेशमहं स्तुवे तं।।२।। पुनातु मे संभवनाथ! चित्तंं, पुन: पुन: संसृतिदु:खतप्तं। संस्तौमि नित्यं शरणं प्रपद्ये, भवाम्बुधे: पारगतं महेशम्।।३।। गुणैरनन्तैरभिनंदनोऽसा-वगात् समृद्धिं सहसा त्रिलोक्यां। ददाति सौख्यं किल भाक्तिकानां, तं देवदेवं प्रणमामि भक्त्या।।४।। नयप्रमाणै: सकलं सुतत्त्वं, प्रकाशयन् यो जगतामुदेति। स:…