प्रशस्ति
प्रशस्ति चौबीसों जिनवर नमूँ, भक्तिभाव उरधार। गणधर गुरुओं को नमूँ, ऋद्धि सिद्धि दातार।।१।। हस्तिनागपुर क्षेत्र पर, जंबूद्वीप विख्यात। तीन लोक आदिक यहाँ, रचना जग में ख्यात।।२।। चारित्र चक्रवर्ती गुरू, शांतिसागराचार्य। उनके पट्टाधीश श्री, वीरसागराचार्य।।३।। किया आर्यिका ज्ञानमति, मेरे गुरुवर मान्य। गणिनी मैंने भक्तिवश, रचा स्तोत्र महान।।४।। जब तक जग में सौख्यप्रद, जिनशासन गुणखान। चौंसठ ऋद्धि…