-श्री ऋषभदेव-भरत-बाहुबलि स्वामी का अर्घ्य- वारि गंध अक्षत कुसुमादिक उसमें बहु रत्नादि मिले । अर्घ्य चढ़ाकर तुम गुण गाऊँ सम्यग्यान प्रसून खिले ।। श्री वृषभेश भरत बाहूबलि तीनों के पद कमल जजूँ । निज के तीन रतन को पाकर भव भव दुख से शीघ्र बचूँ ।।१।।
शारदा पक्ष में सरस्वती की महिमा आर्यिका चंदनामति माता जी जयदु सुद देवदा (वाग्देवी-श्रुतदेवी-जैन सरस्वती) यह प्राणी संसार सागर में परिभ्रमण करता हुआ अनेक कष्ट झेल रहा है, कुछ प्राणी हैं जो इस संसार-सागर से पार होकर स्थायी सुख की खोज में हैं। धर्मों और दर्शनों का उदय यहीं से माना जाना चाहिए। आज…
सोलहकारण पर्व कथा एवं व्रत विधि- जिनधर्म के प्यारे भक्तों ! आजकल भादों के मास का सोलहकारण पर्व चल रहा है , बहुत सारे पुरुष-महिलाएँ इसमें पूरे माह तक उपवास या एक्शन करके व्रत करते हैं और आगामी भवों में तीर्थंकर भगवान बनने की भावना करते हैं । इन भावनाओं के बारे में आप लोगों…