अध्यात्म प्रवाह
अध्यात्म प्रवाह में आत्मा के बहिरात्मा अन्तरात्मा और परमात्मा ऐसे तीन भेद बताते हुए बहिरात्मा को सर्वथा हेय माना गया है पुन: क्रम क्रम से अन्तरात्मा में स्थिर होकर परमात्मा बनने का उद्देश्य दिया गया हैं |
अध्यात्म प्रवाह में आत्मा के बहिरात्मा अन्तरात्मा और परमात्मा ऐसे तीन भेद बताते हुए बहिरात्मा को सर्वथा हेय माना गया है पुन: क्रम क्रम से अन्तरात्मा में स्थिर होकर परमात्मा बनने का उद्देश्य दिया गया हैं |
तीन लोक : एक दृष्टि में सर्वज्ञ भगवान से अवलोकित अनंतानंत अलोकाकाश के बहुमध्य भाग में ३४३ राजू प्रमाण पुरुषाकार लोकाकाश है। यह लोकाकाश जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल इन पांचों द्रव्यों से व्याप्त है। आदि और अन्त से रहित-अनादि अनंत है, स्वभाव से ही उत्पन्न हुआ है। छह द्रव्यों से सहित यह लोकाकाश…
जैन भूगोल – एक दृष्टि में यह तीन लोक अनादिनिधन–अकृत्रिम हैं। इसको बनाने वाला कोई भी ईश्वर आदि नहीं है। इसके मध्यभाग में कुछ कम तेरह राजू लंबी, एक राजू चौड़ी और मोटी त्रसनाली है। इसमें सात राजू अधोलोक है एवंं सात राजू ऊँचा ऊर्ध्वलोक है तथा मध्य में निन्यानवे हजार चालीस योजन ऊँचा और…
आहार प्रत्याख्यान कब करना? दिगम्बर जैन साधु-साध्वी मंदिर में जाकर मध्यान्ह देववन्दना और गुरुवंदना करके आहार को निकलते हैं ऐसा मूलाचार टीका, अनगार धर्मामृत आदि में विधान है फिर भी आजकल प्रात: ९ बजे से लेकर ११ बजे तक के काल में आहार को निकलते हैं। संघ के नायक आचार्य आदि गुरु पहले निकलते हैं…
जैन भूगोल-परम्परा जो राग-द्वेष, क्रोध, मान, माया,लोभ आदि अंतरंग शत्रुओं को वश में करके कर्म शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त कर चुके हैं वे ‘‘जिन’’ कहलाते हैं। उन जिन भगवान के उपासक जैन हैं। प्राणीमात्र पर दया की भावना रखने से यह जैनधर्म ‘‘सार्वभौम’’ धर्म है, इन्हीं जिन भगवान के द्वारा कथित भूगोल जैन-भूगोल कहलाता…
कर्मसिद्धांत- नये परिप्रेक्ष्य में –डॉ. सुभाष चन्द्र जैन,मुम्बई कर्म सिद्धान्त की चर्चा में कर्म शब्द का उपयोग दो विभिन्न प्रसंग में किया जाता है। प्राणी कर्म करते हैं और कर्म बांधते भी हैं। ‘करने’ वाले और ‘बंधने’ वाले कर्मों के अर्थ में अंतर हैं। दोनों तरह के कर्म, यानी ‘करने’ वाले और ‘बंधने’ वाले कर्म…
जैन कर्म सिद्धान्त-एक वैज्ञानिक दृष्टि सारांश कर्म सिद्धान्त जैनदर्शन की आधारशिला है। रसायन शास्त्र के विद्यार्थी सुधी लेखक ने कर्म की आधुनिक विज्ञान के कार्य से तुलना कर उसे वैज्ञानिक दृष्टि से समझाया है। इस लेख से कर्मबन्ध एवं निर्जरा की प्रक्रिया को सरलता से समझा जा सकता है।जो कुछ हम काम करते हैं, उसे…
आर्यखण्ड मध्यलोक में असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्र हैं। उन सब के मध्य सर्वप्रथम द्वीप का नाम जम्बूद्वीप है। यह एक लाख योजन (४० करोड़ मील) विस्तार वाला, थाली के समान गोल है। इस द्वीप के बीचों-बीच एक लाख योजन ऊँचा सुमेरू पर्वत है जिसका भूमि पर विस्तार दस हजार योजन है। इस जम्बूद्वीप में…
जम्बूद्वीप रचना एक लाख योजन विस्तृत गोलाकार (थाली सदृश) इस जम्बूद्वीप में हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी इन छह कुलाचलों से विभाजित सात क्षेत्र हैं—भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत। भरत क्षेत्र का दक्षिण उत्तर विस्तार ५२६ योजन है। आगे पर्वत और क्षेत्र के विस्तार विदेह क्षेत्र तक दूने-दूने हैं…
लवण समुद्र जम्बूद्वीप को घेरे हुए २ लाख योजन व्यास वाला लवण समुद्र है। उसका पानी अनाज के ढेर के समान शिखाऊ ऊँचा उठा हुआ है। बीच में गहराई १००० योजन की है। समतल से जल की ऊँचाई अमावस्या के दिन ११००० योजन की रहती है। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से बढ़ते-बढ़ते ऊँचाई पूर्णिमा…