कुन्दकुन्द दिगम्बर आम्नाय के एक प्रधान आचार्य | अपरनाम वट्टकेर । इन्होंने अपने जीवनकाल में गिरनार पर्वत की संघसहित यात्रा का बहुत बड़ा रेकार्ड बनाया एवं ८४ पाहुड ग्रन्थों की रचना करके जैनसमाज पर बहुत उपकार किया है । इनमें मूलाचार, समयसार, नियमसार आदि ग्रन्थों का स्वाध्याय समाज में बृहत् स्तर पर किया जाता है…
कर्म कर्म शब्द के अनेक अर्थ है यथा- कर्मकारक, क्रिया तथा जीव के साथ बंधने वाले विशेष जाति के पुद्गल स्कन्ध | कर्मकारक जगत प्रसिद्ध है , क्रियाएं समवदान व अध: कर्म आदी के भेद से अनेक प्रकार है | कार्मण पुद्गल का मिथ्यात्व , असंयम , योग और कषाय के निमित्त से आठ कर्म…
णमोकार मंत्र २.१ जैनधर्म में व्यक्ति पूजा का नहीं, गुण पूजा का महत्व है। गुणों की पूजा को भी प्रश्रय इसलिए दिया गया है, ताकि वे गुण हमें प्राप्त हो जाये। गुण पूजा का प्रतीक णमोकार महामंत्र है। यह मंत्र किसी ने बनाया नहीं है बल्कि सदा से इसी रूप में चला आ रहा है।…
कर्मभूमि लोक में जीवों के निवास स्थान को भूमि कहते है | ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक, और अधोलोक ऐसे तीन लोको मे मध्यलोक मे मनुष्य व तिर्यंचो की निवासभूत दो प्रकार की रचनाए है – भोगभूमि व कर्मभूमि | जहा के निवासी स्वयं खेती आदि शत् कर्म करके अपनी आवश्यकताए पूरी करते है उसे कर्मभूमि कहते है…
कर्त्तव्य १. जैनागम मे श्रावक के शत् आवश्यक कर्त्तव्य बताए गये है | जिनको अवश्य ही करना होता है वे आवश्यक क्रियाए या कर्त्तव्य कहलाता है उनके छः भेद है- देवपूजा , गुरुपस्ति, स्वाध्याय , संयम, तप औरर दान | जिनेन्द्र भगवान के चरणों की पूजा सम्पूर्ण दुखों का नाश करने वाली है और सभी…
करुणा (दया का एक नाम) शारीरिक , मानसिक और स्वाभाविक ऐसी असह दुखराशि प्राणियों को सता रही है यह देखकर “अहा! इन प्राणियों ने मिथ्यादर्शन, अविरित, कषाय और अशुभ योग से जो उत्पन्न किया था , वह कर्म उदय मे आकर इन जीवों को दुःख दे रहा है | ये कर्मवश होकर दुःख भोग रहें…
करण जीव के शुभ – अशुभ आदि परिणामों की करण संज्ञा है | सम्यक्त्व व चारित्र की प्राप्ति मे सर्वत्र उत्तरोत्तर तरतमता लिए तीन प्रकार की परिणाम दर्शाये गये है – अध:करण, अपूर्वकरण, अनिव्रत्तिकरण | इन तीनों मे उत्तरोत्तर विशुद्धि की वृद्धि के कारण कर्मो के बंध मे हानि तथा पूर्व सत्ता मे स्थित कर्मो…
कमल भगवान पद्मप्रभु का चिन्ह | १. तीर्थंकर चौबीस होते हैं वर्तमान चौबीसी मे प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुए है जिसमे छठवें तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभु है जिनका चिन्ह कमल है | प्रत्येक तीर्थंकर के जन्म के पश्चात जब सौधर्म इन्द्र प्रभु के जन्माभिषेक के लिए उन्हें सुमेरु पर्वत की पांडुक…