जैन जगत में अनेक महान आत्माएं हुईं हैं जिनके कारण इस देश का मस्तक गौरव से ऊंचा हुआ है | परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी उन्हीं महाआत्माओं में एक हैं जिन्होंने क्वांरी कन्याओं के लिए त्याग का मार्ग प्रशस्त किया और उनकी प्रेरणा से इस त्याग मार्ग में अनेक भव्य प्राणी आत्मकल्याण की ओर उन्मुख हुए , इस क्रम में उनके गृहस्थ जीवन के कई लोग त्याग मार्ग में प्रविष्ट हुए जिनमें से अपने अलौकिक कार्यकलापों से सम्पूर्ण विश्व में अपनी एक अलग छवि बनाने वाले कर्मयोगी के नाम से प्रसिद्ध स्वस्ति श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी हैं जिन्हें २० नवंबर २०११ भगवान महावीर दीक्षाकल्याणक के अवसर पर जम्बूद्वीप के द्वितीय पीठाधीश के पद पर प्रतिष्ठापित किया गया , उस अवसर पर उनका जहां -जहां अभिनन्दन किया गया , उसका वर्णन , उनके जीवन की चित्रमय झलकियां , समाचार आदि का वर्णन इस गौरविका में निहित है | वस्तुतः महापुरुषों के गुणानुवाद से उनका नहीं अपितु स्वयं का गौरव बढ़ता है |