अकृत्रिम वृक्ष जिनालय आदि व्रत संग्रह
तीन लोक में से मध्यलोक के असंख्यात द्वीप- समुद्रों में प्रथम जम्बूद्वीप ,दूसरा धातकीखंड और आधा पुष्कर द्वीप ऐसे ढाई द्वीप तक ही मनुष्यलोक की सीमा है | इन ढाई द्वीपों में पाँच मेरू हैं , जिनके दक्षिण -उत्तर में देवकुरु-उत्तरकुरु दो उत्तम भोगभूमि हैं | इन भोगभूमियों में जम्बूद्वीप में दो, धातकीखंड में चार और अर्ध पुष्कर में चार ऐसे दस अकृत्रिम वृक्ष हैं जिनकी संख्या मध्यलोक के ४५८ अकृत्रिम जिनमंदिरों में आती है | इन वृक्षों की उत्तर शाखा पर १-१ जिनमंदिर है |
इसी प्रकार हिमवान आदि छह कुलाचल पर्वतों पर स्थित छह सरोवरों में जिनमंदिर तथा जम्बूद्वीप के अन्य २० सरोवर= २६ सरोवर ,ऐसे पाँच मेरू संबंधी १३० सरोवर हैं उनमें अकृत्रिम जिनमंदिर हैं , इन वृक्षों एवं कमलों की परिवार संख्या बहुत है उनका व्रत है | देवों के चार भेदों में ज्योतिष्क देवों के सूर्य, चन्द्र आदि ५ भेद हैं जिनके विमान के बीचोंबीच १-१ जिनमंदिर है , असंख्यात द्वीप – समुद्र होने से असंख्यात सूर्य चंद्रादि हुए और असंख्यात जिनमंदिर हुए उनका व्रत भी इसमें वर्णित है | पूज्य गणिनीपमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने प्राचीन ग्रंथों के आधार से इन व्रतों का वर्णन किया है |