Jaina Geography
Jain Geography-English Final by Jambudweep Jain
हम जिस देश में रहते हैं उसका नाम है, भारत को ”विश्व गुरु” भी कहा जाता है ।(संपूर्ण दुनिया में )यहां अनेक धर्मों को पालन करने वाले लोग रहते हैं, पर “अहिंसा धर्म” सर्वोपरि है अहिंसा के बल पर ही हमारा देश स्वतंत्र हुआ ।अहिंसा के द्वारा ही पर्यावरण की शुद्धि और संपूर्ण विश्व में शांति की स्थापना हो सकती है।
एडवांस डिप्लोमा जैनोलॉजी (द्वितीय पत्र)
जैन आचार संहिता
इस पुस्तक में परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आरिकारत्न श्री चंदना मति माताजी ने श्रावकाचार की प्रारंभिक अवस्था 12 व्रत एवं 11 प्रतिमाओं का सुंदर वचन करते हुए आचार्य उपाध्याय एवं साधु परमेश्वरी के श्रमणाचार्य का भी सटीक विवरण प्रस्तुत किया है साथ ही 12 अनुप्रेक्षा ध्यान सललेखना एवं पंचाचार के वर्णन द्वारा “जैन आचार संहिता” का दिग्दर्शन कराया है
स्तुति को पढ़ने की परंपरा पुरानी है इसी क्रम में पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमति माताजी ने अपनी लेखनी से संस्कृत में सातों विभक्ति से संबंधित 24 तीर्थंकर भगवन्तों की एवं गौतम स्वामी, सरस्वती माता, ग्रंथराज षट्खंडागम एवं गुरुणाम गुरु आचार्य श्री शांतिसागर महाराज एवं दीक्षा गुरु वीरसागर जी महाराज आदि अनेकानेक स्तुतियों को बहुत ही सुंदर लिखकर एक छोटी सी पुस्तक मृत्युंजयितीर्थंकर स्तुति के नाम से हमें प्रदान किया है।
The True Stories of Jainism-2 by Jambudweep Jain
द्रव्य संग्रह पुस्तक में 6 द्रव्यों का सुंदर एवं विस्तृत विवेचन किया है, आचार्य श्री नेमचंद द्वारा रचित मूल गाथाएं प्राकृत भाषा में है ,इसने प्राण समुघात,मार्गणा आदि का विशेष रूप से वर्णन 58 गांथाओं में किया है। इसका पद्यानुवाद पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने बहुत ही सरल एवं सरस शब्दों में किया है।
यह ग्रंथ सबके लिए मंगलमय हो
जैन सिध्दांत में कर्म व्यवस्था को ही सर्वाधिक बलवान मानकर उससे लड़ने का मार्ग हमारे तीर्थंकरों ने बताया हैं ,फिर भी बाह्यनिमित्तों में ग्रह आदि का भी महत्त्वपूर्ण स्थान माना हैं|ग्रह नव माने हैं,सूर्य ,सोम ,मंगल ,बुद्ध,गुरु ,शुक्र ,शनि,राहु,केतू| इन नवग्रहों के अधिपति देवता पूर्व जन्म के वैर या मित्रत्रावश अथवा इस जन्म में मात्र क्रीडा आदि के निमित्त से लोगों को सुख -दुःख फुचातें रहते हैं |
नवग्रह अरिष्ट निवारक पूजा विधान एवं स्तोत्र की परम्परा काफी दिनों से हमारें समाज में चल रहि हैं ,वर्तमान में नवग्रह 2 प्रकार है |
पहला -”जिनसागरसूरी कृत”नवग्रह -जिसमें नव भगवान माने हैं |
दूसरा -”’श्रुतकेवली भद्रबाहु मुनिराज कृत”जिसमे 24 भगवानमाने हैं |
इस पुस्तक में ४ प्रकार के नवग्रहशांति मंत्र भी दिये हैं |
ॐशांति
जैन वांगमय चार अनुयोगों में विभक्त है जिसमें करणानुयोग के अंतर्गत तीनों लोक , भूगोल- खगोल आदि का वर्णन आता है | परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने चारों अनुयोगों का तलस्पर्शी ज्ञानप्राप्त करके करणानुयोग के अंतर्गत जैन ज्योतिर्लोक के विषय में बताया है | प्रस्तुत पुस्तक में सूर्य, चंद्रमा, तारे कहाँ हैं ? पृथ्वी से कितनी ऊंचाई पर हैं? उनके विमान का प्रमाण , उनकी किरणों का प्रमाण ,शीत- उष्ण किरणें , देवों की आयु , दिन – रात्रि का विभाग , १ मिनट में सूर्य का गमन , चंद्रग्रहण – सूर्यग्रहण आदि प्रमुख विषय लिए गए हैं | साथ ही भूभ्रमण खंडन में जैन ग्रन्थानुसार पृथ्वी को स्थिर बताया है | इस् पुस्तक के माध्यम से जैन भूगोल- खगोल को अच्छी प्रकार समझा जा सकता है |